एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का यह बयान उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग कर रहे कई पत्रकारों को हिरासत में लेने के बाद आया है.
जिस वक्त रिपोर्टिंग की ज़रूरत है, जाकर देखने की ज़रूरत है कि फील्ड में पुलिस किस तरह की हिंसा कर रही है, पुलिस की बातों में कितनी सत्यता है, उस वक्त मीडिया अपने स्टूडियो में बंद है. वह सिर्फ पुलिस की बातों को चला रहा है, उसे सत्य मान ले रहा है.
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ के पत्रकार उमर राशिद को लखनऊ में भाजपा दफ्तर के पास एक रेस्तरां से बीते शुक्रवार को पुलिस ने हिरासत में लिया था. पत्रकार के अनुसार, पुलिस ने उन पर नागरिकता क़ानून के विरोध में लखनऊ में हुई हिंसा की साजिश रचने का आरोप लगाया और उन पर सांप्रदायिक टिप्पणी भी की थी.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा 11 दिसंबर को जारी पहले परामर्श की निंदा करते हुए एडिटर्स गिल्ड ने सरकार से इसे वापस लेने का अनुरोध किया था. दूसरा परामर्श जारी होने बाद तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि यह सूचना पहुंचाने वाले को ही सजा देना है.
पेरिस स्थित निगरानी संगठन ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ के प्रमुख क्रिस्टोफ डेलोयर ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अधिकतर पत्रकारों को उनके काम के लिए निशाना बनाया जा रहा है, जो कि लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है.
मीडिया बोल की इस कड़ी में उर्मिलेश नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई के बारे में वरिष्ठ पत्रकार आरती जैरथ, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर रिज़वान कैसर से चर्चा कर रहे हैं.
एडिटर्स गिल्ड का कहना है कि देश में हो रही घटनाओं की ज़िम्मेदार कवरेज के लिए मीडिया की प्रतिबद्धता पर इस तरह के परामर्श से सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए. सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने सभी निजी टीवी चैनलों से कहा था कि वे ऐसी सामग्री दिखाने से परहेज करें जो ‘राष्ट्र विरोधी रवैये’ को बढ़ावा दे सकती है.
असम में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के बीच गुवाहाटी के एक निजी समाचार चैनल ने कहा कि पुलिस द्वारा बिना किसी उकसावे के उनके दफ़्तर में घुसकर स्टाफ को पीटा गया. चैनल ने पुलिस से बिना शर्त माफ़ी मांगने को कहा है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देश में कहा गया है कि सभी टीवी चैनलों को सलाह दी जाती है कि वे ऐसी सामग्री के प्रति खासतौर पर सावधानी बरतें, जिनसे हिंसा को प्रोत्साहन मिलता हो या उससे हिंसा भड़कती हो या कानून-व्यवस्था बनाए रखने में समस्या पैदा होने की आशंका हो या फिर ऐसी घटनाएं, जो राष्ट्रविरोधी व्यवहार को बढ़ावा दे रही हों.
हैदराबाद में हुए महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या मामले में मीडिया संस्थानों द्वारा पीड़िता की पहचान उजागर करने को लेकर दिल्ली के एक वकील ने याचिका दायर की है. गृह मंत्रालय के निर्देश हैं कि बिना अदालत की अनुमति के किसी भी स्थिति में पीड़िता का नाम उजागर नहीं किया जा सकता.
पुलिस का कहना है कि इंदौर के 'संझा लोकस्वामी' अख़बार के मालिक जितेंद्र सोनी पर दो लोगों के बीच की अंतरंग बातचीत का ब्योरा और तस्वीरें अख़बार में प्रकाशित कर आईटी एक्ट का उल्लंघन करने और कारोबार में अनियमितता समेत कई आरोप लगाए गए हैं.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने लोगों से सोशल मीडिया सहित किसी भी मंच पर नज़र आने वाली केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों और योजनाओं से जुड़ी किसी ‘संदिग्ध सामग्री’ की तस्वीर ईमेल करने का अनुरोध किया और कहा कि इसकी छानबीन की जाएगी.
प्रेस एवं पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2019 के मसौदे में डिजिटल मीडिया को आरएनआई के तहत लाने की तैयारी की जा रही है. वर्तमान में डिजिटल मीडिया देश की किसी भी संस्था के अंतर्गत पंजीकृत नहीं है.
वीडियो: मीडिया बोल की इस कड़ी में उर्मिलेश महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक पर वरिष्ठ पत्रकार वेंकटेश केसरी, बिजनेस स्टैंडर्ड की पॉलिटिकल एडिटर अदिति फड़नीस और द वायर के डिप्टी एडिटर अजय आशीर्वाद से चर्चा कर रहे हैं.
मुख्यधारा की पत्रकारिता तो शुरुआती दिनों से ही राम जन्मभूमि आंदोलन का अपने व्यावसायिक हितों के लिए इस्तेमाल करती और ख़ुद भी इस्तेमाल होती रही. 1990-92 में इनकी परस्पर निर्भरता इतनी बढ़ गई कि लोग हिन्दी पत्रकारिता को हिंदू पत्रकारिता कहने लगे.