भाजपा और संघ नफ़रत की सियासत छोड़ें तो हम साथ देने को तैयार: जमीयत

मौलाना अरशद मदनी ने कहा, मुल्क की ख़राब सूरत-ए-हाल से निपटना हर हिंदुस्तानी का फ़र्ज़ है. अगर मुल्क़ में ख़ुदा ना ख़ास्ता बरबादी आई तो वह हिंदू या मुसलमान नहीं देखेगी.

वसुंधरा सरकार ने गौरवशाली राजस्थान को मुंह दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा: गहलोत

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि आज कोई तबका राजस्थान सरकार से खुश नहीं है. व्यापारी जीएसटी से दुखी है. युवा नौकरी के रास्ते नहीं खुलने से परेशान हैं.

राज्यसभा से अयोग्य घोषित होने से जुड़ी शरद यादव की याचिका पर सुनवाई करेगा हाईकोर्ट

शरद यादव ने अपनी याचिका में कहा है कि उपसभापति वेंकैया नायडू ने उनका और अली अनवर अंसारी का पक्ष सुने बिना ही सदस्यता रद्द कर दी है.

सड़क दुर्घटना, आग और तेज़ाब हमला पीड़ितों का निजी अस्पतालों में भी ख़र्च उठाएगी दिल्ली सरकार

सत्येंद्र जैन ने कहा, लोग सड़क दुर्घटना पीड़ितों को पास के निजी अस्पताल के बजाय सरकारी अस्पताल ले जाते हैं, जिससे वे जल्दी उपचार से वंचित हो जाते हैं.

सांप्रदायिकता डर का व्यापार है, मोदी गुजरात में डर बेच रहे हैं

मोदी चाहते हैं कि हम भारत के लोग ज्ञात-अज्ञात दुश्मनों से डरने वाली एक कमज़ोर क़ौम बनें ताकि सांप्रदायिक राजनीति का दैत्य निडर होकर घूम सके.

नेताओं की संलिप्तता वाले मामलों के लिए विशेष अदालतें गठित की जाएंगी: केंद्र

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, एक साल के लिए 12 विशेष अदालतें नेताओं के ख़िलाफ़ लंबित मामलों के निबटारे के लिए गठित की जाएंगी.

देश को न मोदी चाहिए, न राहुल: अन्ना हजारे

अन्ना बोले, दोनों उद्योगपतियों के हिसाब से काम करते हैं. इस बार किसान के हित में सोचने वाली सरकार चाहिए. देश में 22 साल में 12 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

जन गण मन की बात, एपिसोड 162: मोदी का गुजरात चुनाव प्रचार और एफआरडीआई विधेयक 

जन गण मन की बात की 162वीं कड़ी में विनोद दुआ प्रधानमंत्री के गुजरात चुनाव प्रचार और वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक पर चर्चा कर रहे हैं.

मणिशंकर ने पाकिस्तान को मोदी की सुपारी दी तो मोदी ने कार्रवाई क्यों नहीं की: विपक्ष

गुजरात चुनाव राउंडअप: वामदल और जदयू ने कहा, मोदी मुद्दों के बजाय गुजरात में पाकिस्तान के दख़ल की बात करते हैं, आरोप में दम है तो उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए.

गुजरात चुनाव: एक ही सवाल बार-बार, कहां गईं नौकरियां-कहां है रोज़गार

राज्य के मौजूदा राजनीतिक विमर्श में रोज़गार और नौकरी को लेकर उठी आवाज़ें दब-सी गयी हैं. पूरा चुनाव प्रचार षड्यंत्रों की उल्टी-सीधी दास्तानों और ध्रुवीकरण पर आधारित हो गया है.

क्या अपराधी नेताओं के पक्ष में काम करती है भारत की नौकरशाही?

सवाल है कि क्या हमारे नेता नौकरशाही में अपने समर्थ सहयोगियों की मिलीभगत के बग़ैर ही अकूत काला धन जमा करने और तरह-तरह के अपराध करने में कामयाब हो जाते हैं?

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