वीडियो: केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश के बाद लगी पाबंदियों पर सवाल उठाते हुए आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने इस्तीफ़ा दे दिया है. उनसे मीनाक्षी तिवारी की बातचीत.
केरल कैडर के आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने कहा कि आज से बीस साल बाद अगर लोग मुझसे पूछेंगे कि जब देश के एक हिस्से में आभासी आपातकाल लगा दिया गया था तब आप क्या कर रहे थे तब कम से कम मैं यह कह सकूंगा कि मैंने आईएएस से इस्तीफ़ा दे दिया था.
आपातकाल के 44 साल बाद इन सेंसर-आदेशों को पढ़ने पर उस डरावने माहौल का अंदाज़ा लगता है जिसमें पत्रकारों को काम करना पड़ा था, अख़बारों पर कैसा अंकुश था और कैसी-कैसी ख़बरें रोकी जाती थीं.
बीते अप्रैल माह में श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में तीन गिरजाघरों और तीन होटलों का निशाना बनाते हुए किए गए धमाकों के 258 लोगों की मौत हो गई थी. इस सिलसिले में 10 महिलाओं सहित 100 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने कथित तौर पर विभिन्न राज्यों के नौकरशाहों से उन जगहों के बारे में जानकारियां मांगी, जहां प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार के लिए जाना था. अगर यह साबित हो जाता है तो न केवल आदर्श आचार संहिता बल्कि जनप्रतिनिधि क़ानून का उल्लंघन होगा.
भाजपा के संस्थापक ने विरोधियों को एंटी-नेशनल कहने पर आपत्ति जताई है, जो मोदी-शाह की रणनीति और अभियान का प्रमुख तत्व रहा है. ऐसा ही कुछ लालकृष्ण आडवाणी ने 1970 के दशक के मध्य में आपातकाल के समय जेल में बंद होने के दौरान भी लिखा था.
अगर नरेंद्र मोदी वापस सत्ता में आते हैं, तो अगले पांच सालों की तस्वीर ज़्यादा क्रूर और निर्मम होगी.
लेखिका नयनतारा सहगल ने कहा कि आज हम एक ऐसी स्थिति में हैं जो कि संवैधानिक तौर पर एक लोकतंत्र है लेकिन उसमें तानाशाही के सभी गुण मौजूद हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान वर्ष 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल के दौरान जेल में डाले गए लोगों को मीसाबंदी पेंशन योजना के तहत करीब 4000 लोगों को 25,000 रुपये मासिक पेंशन दी जाती है.
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार लोगों की निजी ज़िंदगी में दख़ल देकर आपातकाल लागू करना चाहती है.
भारत के ज़्यादातर पत्रकार आज़ाद नहीं हैं बल्कि मालिक के अंगूठे के नीचे दबे हैं. वह मालिक, जो राजनेताओं के सामने दंडवत रहता है.
अपनी नई किताब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नटवर सिंह ने लिखा है कि अक्सर इंदिरा गांधी को गंभीर और क्रूर बताया जाता है. कभी-कभार ही यह कहा गया कि वह सुंदर, गरिमामयी और शानदार इंसान के साथ एक विचारशील मानवतावादी एवं अध्ययन करने वाली महिला थीं.
रोजगार नहीं है. उत्पादन घट गया है. किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नसीब नहीं हो रहा है. हेल्थ सर्विस चौपट हो चली है. शिक्षा-व्यवस्था डांवाडोल है. मुस्लिम ख़ामोश हो गया है. दलित चुपचाप है लेकिन आवाज़ नहीं उठनी चाहिए क्योंकि देश में क़ानून अपना काम कर रहा है.
हम देश के एक छोटे से क़स्बे में पले-बढ़े लेकिन उस दौर में लोगों का दिलो-दिमाग राजनीति ने इतना छोटा नहीं था, जबकि देश का विभाजन हुए बहुत अरसा भी नहीं बीता था. नफ़रत की ऐसी आग नहीं लगी हुई थी, जैसी आज लगी है.
एंटी-नेशनल, भारत विरोधी जैसे शब्द आपातकाल के सत्ताधारियों की शब्दावली का हिस्सा थे. आज कोई और सत्ता में है और अपने आलोचकों को देश का दुश्मन बताते हुए इसी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है.