यदि सरकारों ने बच्चों की प्रारंभिक देखरेख और सुरक्षा पर ध्यान दिया होता, तो आज राखी, मीनू और सीता ज़िंदा होतीं.
नीति आयोग द्वारा जारी 'स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत' नामक यह रिपोर्ट 2015-16 की अवधि के लिए तीन श्रेणियों बड़े राज्य, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के आधार पर तैयार की गई है.
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हम बेरोज़गारी से परेशान हैं. संभवत: यह बेरोज़गारी नहीं बल्कि अल्प रोज़गार या असंतोषजनक रोज़गार का मामला है.’
21 बड़े राज्यों में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले केरल को 76.55 अंक मिले जबकि अंतिम पायदान पर रहे उत्तर प्रदेश को 33.69 अंक ही मिले जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में न्यूनतम हैं.
दो हज़ार करोड़ के फंड के साथ पचास करोड़ लोगों को बीमा देने की करामात भारत में ही हो सकती है. यहां के लोग ठगे जाने में माहिर हैं. दो बजट पहले एक लाख बीमा देने का ऐलान हुआ था, आज तक उसका पता नहीं है.
नीति आयोग के सीईओ ने यह भी कहा कि आने वाले 3 सालों में देश में एक अरब से ज्यादा स्मार्टफोन उपभोक्ता होंगे, जिससे डाटा के जरिये वित्तीय भागीदारी बढ़ेगी.
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा, आने वाले समय में वित्तीय लेन-देन के लिए लोग अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करेंगे.
नीति आयोग से जुड़ी संस्था का कहना है, 'रोज़गार की समस्या बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी के उपयोग और उपयुक्त कौशल की कमी की वजह से है.'
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, अधिक रोज़गार सृजन की ज़रूरत है लेकिन निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं होना चाहिए.
नीति आयोग ने अंतरराज्यीय अपराध और आतंकवाद से निपटने के लिए राज्य की क़ानून व्यवस्था में केंद्र की भूमिका बढ़ाने का सुझाव दिया है.
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने कहा कि हमारे पास रोज़गार को लेकर ठोस आंकड़ा नहीं है.
अमिताभ कांत ने कहा, राज्यों को इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए कि पर्यटक क्या खाना-पीना चाहता है. यह पर्यटकों का निजी मामला है.
आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में तीन साल के न्यूनतम स्तर पर, नीति आयोग को है सुधार की उम्मीद.
नीति आयोग ने सिफारिश की है कि इस बात संभावना तलाशनी चाहिए कि क्या निजी क्षेत्र प्रति छात्र के आधार पर सार्वजनिक वित्त पोषित सरकारी स्कूल को अपना सकते हैं.
भारतीय मजदूर संघ ने नीति आयोग के उन निष्कर्षों को आधारहीन बताया है कि श्रम कानूनों में संशोधन के बिना विकास और रोज़गार संभव नहीं है.