बुरक़ा और टोपी को मुसलमानों की प्रगति की राह में रोड़ा बताने वालों को अपने पूर्वाग्रहों के परदे हटाने की ज़रूरत है.
मीडिया बोल की 42वीं कड़ी में उर्मिलेश सोशल मीडिया पर वायरल हुए अररिया वीडियो की मीडिया रिपोर्टिंग, राज्यसभा चुनाव और कैंब्रिज एनालिटिका को लेकर हुए डेटा लीक विवाद पर चर्चा कर रहे हैं.
दुमका कोषागार से गबन के मामले में लालू पर 60 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.
हम भी भारत की 26वीं कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के एक साल पूरे होने पर स्वतंत्र पत्रकार नेहा दीक्षित और द वायर के अजय आशीर्वाद से चर्चा कर रही हैं.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, मेडिकल के क्षेत्र में तैयार प्रतिभाएं बड़ी-बड़ी कंपनियों में चली जाती हैं. लेकिन सीवी रमण के बाद किसी भारतीय को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है.
जन गण मन की बात की 214वीं कड़ी में विनोद दुआ इराक़ में मारे गए 39 भारतीयों को लेकर केंद्र सरकार के खुलासे पर चर्चा कर रहे हैं.
शरद यादव ने कहा कि भाजपा द्वारा फैलायी जा रही सांप्रदायिकता को सामाजिक न्याय का आंदोलन ही रोक सकता है. आज सामाजिक विषमता का आलम यह है कि किसान, दलित और ग़रीब तबका बेहद दिक्कत में हैं.
लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में योजना राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने दी जानकारी.
पिछले महीने केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, बुढ़ाना विधायक उमेश मालिक और खाप नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से जुड़े 179 मामलों रद्द करने की सूची सौंपी थी.
ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार में किसान आत्महत्या की घटनाएं कम होने का मतलब यह कतई नहीं कि यहां के किसान खेती कर मालामाल हो रहे हैं. कृषि संकट के मामले में बिहार की तस्वीर भी दूसरे राज्यों की तरह भयावह है.
देश के कई राज्यों से आए सरकारी बैंक कर्मचारियों ने नई दिल्ली के संसद मार्ग पर विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन किया.
विपक्ष ने केंद्र की मोदी सरकार पर संवेदनहीन होने का आरोप लगाया. मारे गए हर भारतीय के परिजनों के लिए मांगा दो करोड़ रुपये का मुआवज़ा.
राज बब्बर ने इस्तीफ़े का स्पष्ट कारण नहीं बताया. उनसे पहले गोवा में पार्टी प्रमुख शांताराम नाइक ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था.
पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अभिजात्य और शासक वर्गों में पर्यावरण और सामाजिक-नागरिक प्रतिरोध के केंद्र के रूप में सघन वन्य इलाक़ों को नकारात्मक रूप से देखने की प्रवृत्ति मिलती है.
हिंदी साहित्य के संसार में केदारनाथ सिंह की कविता अपनी विनम्र उपस्थिति के साथ पाठक के बगल में जाकर खड़ी हो जाती है. वे अपनी कविताओं में किसी क्रांति या आंदोलन के पक्ष में बिना शोर किए मनुष्य, चींटी, कठफोड़वा या जुलाहे के पक्ष में दिखते हैं.