चाहे हीरा-व्यापार का मामला हो या बुनियादी ढांचे की कुछ बड़ी परियोजनाएं, काम करने का तरीका एक ही रहता है- परियोजना की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और बैंकों व करदाताओं का ज़्यादा से ज़्यादा पैसा ऐंठना.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में देने से समस्या ख़त्म हो जाएगी, ऐसा सोचना अज्ञानता के अलावा कुछ नहीं है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आर्थिक संकट में उद्योगपतियों ने ही डाला है और कमाल की बात यह है कि निजीकरण के तहत इन बैंकों को एक तरह से उनके ही क़ब्ज़े में देने की बातें हो रही हैं.
ग़ैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 180 देशों की रिपोर्ट में भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भ्रष्टाचार और प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सबसे ख़राब स्थिति वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है.
आज जब दुनिया में नाना प्रकार के खोट उजागर होने के बाद भूमंडलीकरण की ख़राब नीतियों पर पुनर्विचार किया जा रहा है, हमारे यहां उन्हीं को गले लगाए रखकर सौ-सौ जूते खाने और तमाशा देखने पर ज़ोर है.
पिछली सरकारों में व्यवस्था को अपने फ़ायदे के लिए तोड़ने-मरोड़ने वाले पूंजीपति मोदी सरकार में भी फल-फूल रहे हैं.
उप राष्ट्रपति साइरिल रामाफोसा अंतरिम राष्ट्रपति तब तक के लिए बनेंगे जब तक नए राष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया संसदीय तरीके से पूरी नहीं हो जाती है.
प्रधानमंत्री नेतन्याहू जिस परियोजना में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं, टाटा पर भी उसमें शामिल होने का ख़बरें आ रही हैं. टाटा के कार्यालय ने आरोपों को ग़लत बताया.
जहां बाकी कॉरपोरेट खिलाड़ी सिर्फ सुर्खियों में रहते हैं, वहीं सही मायनों में 'अच्छे दिन' एक अनाम-सी फर्म स्वान एनर्जी के प्रमोटर के आए हैं, जिनके साथ कारोबार करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां तैयार खड़ी हैं.
पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस खेहर ने कहा कि आज़ादी के समय भारत ने धर्मनिरपेक्ष रहना पसंद किया था, लेकिन हम उसे भूल गए.
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 (मेडिकल बिल) को विचार के लिए संसद की स्थायी समिति को भेज दिया है.
ऐसा लगता है कि मोदी के लिए भ्रष्टाचार भी बस एक और ‘जुमला’ था क्योंकि भाजपा द्वारा भ्रष्टाचार के लिए जिन्हें निशाना बनाया गया, वे न सिर्फ जीवित हैं, बल्कि उसके नेतृत्व में फल-फूल भी रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष ने मोदी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, गुजरात ने मुझे सिखाया कि क्रोध, धन और बल को आप प्यार और भाईचारे से टक्कर दे सकते हैं.
अन्ना बोले, दोनों उद्योगपतियों के हिसाब से काम करते हैं. इस बार किसान के हित में सोचने वाली सरकार चाहिए. देश में 22 साल में 12 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
सरकारी खजाने को 19,576 करोड़ का लगाया चूना. नजदीकी अधिकारियों को नवाजे गए ऊंचे पद. विदेशी मुद्रा के नाम पर 10,651 करोड़ बाहर ले जाया गया और गुम हो गया.