ग़ैर सरकारी संगठन भोजन का अधिकार अभियान के सर्वे में ये बात सामने आई है कि आंगनबाड़ियों, स्वास्थ्य केंद्रों और दाल-भात केंद्रों से ग्रामीण झारखंड के लोगों को बहुत कम जन सहायता मिल रही है. दोगुने राशन के वितरण में बहुत अनियमितताएं हैं.
वीडियो: बीते 24 मार्च को हुए देशव्यापी लॉकडाउन में गुड़गांव में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले नानबाबू फंस गए. इस दौरान कालिंदी कुंज में रहने वाले पड़ोसियों ने चंदा इकट्ठा कर उनकी पत्नी रेशमा की डिलीवरी कराई और खाने-पीने का इंतजाम कर रहे हैं. विशाल जायसवाल की रिपोर्ट.
महामारियों ने हमेशा से ही इंसान को अतीत से नाता तोड़कर एक नए भविष्य की कल्पना करने के लिए मजबूर किया है. यह महामारी भी नए और पुराने के बीच एक दरवाज़ा है और यह हम पर है कि हम पूर्वाग्रह, नफ़रत, लोभ आदि के कंकाल ढोते हुए आगे बढ़ें या बिना ऐसे बोझों के एक नई और बेहतर दुनिया की कल्पना के साथ आगे निकलें.
संगठन के मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से मजदूर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ‘पीएम केयर्स’ फंड की संपूर्ण राशि ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ में स्थानांतरित करने, सरकारी खर्च में 30 प्रतिशत की कटौती करने, 'सेंट्रल विस्टा' परियोजना को स्थगित करने और सरकारी विज्ञापनों पर दो साल तक रोक लगाने का अनुरोध किया.
भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2006 से 2016 के बीच 27.1 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर आए हैं, लेकिन अब लॉकडाउन के चलते कई लोगों की ज़िंदगी अधर में है. इसके चलते हज़ारों लोग बेरोज़गार हुए है और अपने गांव-क़स्बों की ओर लौटने को मजबूर हैं.
एक जनहित याचिका में शहरों से पलायन न करने वाले कामगारों को पारिश्रमिक दिए जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे बताया गया है कि ऐसे कामगारों को आश्रय गृहों में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है और ऐसी स्थिति में उन्हें पैसे की क्या जरूरत है.
दिल्ली के कालिंदी कुंज के श्रम विहार इलाके में बसे एक कैंप में रहने वाली 23 वर्षीय रेशमा के पति दिहाड़ी मज़दूर हैं, जो लॉकडाउन के चलते गुड़गांव में फंस गए हैं. रेशमा ने दस दिन पहले बेटी को जन्म दिया है. बिना पैसे और खाने के वह पड़ोसियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद के सहारे रह रही हैं.
सर्वे में शामिल 3,196 प्रवासी मजदूरों में से 31 फीसदी लोगों ने बताया कि उनके ऊपर कर्ज है और अब रोजगार खत्म होने के चलते वे इसकी भरपाई नहीं कर पाएंगे. मजदूरों को डर है कि इसके चलते उन पर हमला हो सकता है क्योंकि ज्यादातर कर्ज साहूकारों से लिए गए हैं.
कोरोना वायरस के चलते देश में लागू लॉकडाउन झारखंड के डेयरी किसानों के लिए भारी पड़ रहा है. किसानों का कहना है कि सरकार जिस तरह से ज़रूरतमंदों को राशन दे रही है, वैसे ही किसानों को भी पशु आहार मुफ्त में मिलना चाहिए.
देश के विभिन्न शहरों से तमाम परेशानियों के बाद अपने गांव पहुंचे मज़दूरों को गांव के स्कूलों में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों में रखा गया है. अधिकांश स्कूलों में बिजली, पानी, शौचालय आदि से जुड़ी अव्यवस्थाओं के चलते मज़दूरों का यह 'एकांतवास' नए संघर्ष में बदल गया है.
केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के मद्देनजर सांसद निधि को दो साल के लिए निलंबित करने का फैसला किया है. सांसद निधि को निलंबित किए जाने पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने कहा कि इससे नई दिल्ली की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा जाएगा, न कि 543 सांसदों के स्थानीय मुद्दों को.
बीते छह सालों में मोदी सरकार के कई फ़ैसले दिखाते हैं कि उसे जनता में डर और दहशत पैदा करने का विचार पसंद है. नोटबंदी में लंबी लाइनों में लगकर पुराने नोटों को बदलना हो, नागरिकता साबित करने के लिए कागज़ जुटाना या अचानक हुए लॉकडाउन में अनहोनी के डर पलायन, सरकार के फ़ैसलों की मार समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके पर ही पड़ी है.
गुजरात में वडोदरा नगर निगम की एक निर्माणाधीन भवन को राहत शिविर में बदलकर यहां पर 316 लोगों को रखा गया है. ये शहर का पहला राहत शिविर है जिसमें लॉकडाउन के बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जाने वाले प्रवासी मज़दूरों को रखा गया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना महामारी से फैले अंधकार के बीच हमें निरंतर प्रकाश की ओर जाना है. जो इस कोरोना संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, हमारे ग़रीब भाई-बहन, उन्हें निराशा से आशा की तरफ ले जाना है. काश, वे यह समझते कि ये ग़रीब इस तरह निराश नहीं हुआ करते, वे तभी हारते हैं जब ढोंग और ढकोसलों में भरमा दिए जाते हैं.