चुनावी राज्यों में नोटा का मत प्रतिशत आप और सपा सहित अन्य कई क्षेत्रीय दलों से अधिक दर्ज किया गया है.
पिछले पांच सालों में राजस्थान के विधायकों के वेतन-भत्तों पर 90.79 करोड़ रुपये ख़र्च किया गया है. वहीं पूर्व विधायकों को मिलने वाली पेंशन राशि लगभग तीन गुना बढ़ गया है.
अलवर के रामगढ़ से विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद पार्टी छोड़कर जयपुर के सांगानेर से निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर नामांकन दाख़िल किया था.
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य में हर एक विधायक की कमाई सूबे की अनुमानित प्रति व्यक्ति आय के मुक़ाबले क़रीब 18 गुना ज़्यादा थी.
ग्राउंड रिपोर्ट: सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच राज्य में 57,000 बच्चों ने कुपोषण के कारण दम तोड़ दिया था. कुपोषण की वजह से ही श्योपुर ज़िले को भारत का इथोपिया कहा जाता है.
पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के लिए बुलाये गए संवाददाता सम्मेलन को लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस द्वारा उठाए गए सवाल गंभीर हैं.
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में एक साथ 11 दिसंबर को मतगणना होगी.
चुनाव आयोग लगातार अपनी विश्वसनीयता से खिलवाड़ कर रही है. गुजरात विधानसभा की तारीख़ तय करने के मामले में यही हुआ. यूपी के कैराना में उपचुनाव हो रहे थे, आचार संहिता लागू थी और आयोग ने प्रधानमंत्री को रोड शो करने की अनुमति दी.
मोदी सरकार एक चीज़ की मास्टर है. वह समय-समय पर थीम और थ्योरी ठेलते रहती है. कुछ थीम मार्केट में आकर ग़ायब हो जाते हैं और कुछ चलते रहते हैं. जैसे मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया का थीम ग़ायब है.
ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में निर्धारित विधानसभा चुनावों को टाला जा सकता है और उन्हें अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव के साथ कराया जाएगा.
मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि अगर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को समय से पहले दिसंबर में कराया जाता है, तो उसी समय चार विधानसभा चुनाव भी साथ में कराने में चुनाव आयोग सक्षम है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए सभी राजनीतिक दलों में सहमति होना ज़रूरी है. वहीं, एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में भाजपा की दलील है कि देश हमेशा चुनावी मोड में नहीं रह सकता.
आंकड़ों पर ग़ौर करें तो भाजपा समर्थकों का यह दावा पूरी तरह से सही नहीं दिखता है. देश की कुल 4,139 विधानसभा सीटों में से सिर्फ़ 1,516 सीटें यानी करीब 37 फीसदी ही भाजपा के पास हैं और सिर्फ़ दस राज्यों में भाजपा की बहुमत वाली सरकार है.
आज चुनावों के विकास में बाधक होने का तर्क स्वीकार कर लिया गया तो क्या कल समूचे लोकतंत्र को ही विकास विरोधी ठहराने वाले आगे नहीं आ जाएंगे!
चिदंबरम ने कहा कि कल यदि कोई सरकार गिर जाती है तो फिर क्या होगा? क्या आप उसे बाकी चार साल के लिए राष्ट्रपति शासन में रखेंगे?