हिंदी थोपने की अनावश्यक आक्रामकता ख़ुद उसके लिए नुक़सानदेह है

अक्सर देखा गया है कि ग़ैर-हिंदीभाषियों को हिंदी अपनाने का उपदेश देने वाले ख़ुद अंग्रेज़ी की राह पकड़ लेते हैं. यह प्रश्न बार-बार उठा है कि कितने हिंदीभाषियों ने अन्य भारतीय भाषाएं सीखी हैं?

कंगना रनौत को फेमिनिज़्म के बारे में अभी बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है

कंगना रनौत का एक साथी महिला कलाकार के काम को नकारते हुए उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास और घर गिराए जाने की तुलना बलात्कार से करना दिखाता है कि फेमिनिज़्म को लेकर उनकी समझ बहुत खोखली है.

क्यों बस्तर के प्रसिद्ध दशहरे के रथ के लिए आदिवासी लकड़ी देने से इनकार कर रहे हैं

बस्तर में हर साल दशहरे के पर्व पर एक आठ पहियों का रथ निकलता है, जिसे ककालगुर गांव की लकड़ी से तैयार किया जाता है. इस बार यहां के ग्रामीणों ने सदियों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन करने से इनकार कर दिया है.

सुशांत-कंगना का सुर्ख़ियों में बने रहना मीडिया की छद्म जनमत निर्माण की बढ़ती ताक़त की बानगी है

मीडिया के पास कुछ हद तक जनमत निर्माण की ताक़त हमेशा से थी, मगर उसकी एक सीमा थी, उनके द्वारा उठाए मुद्दे में कुछ दम होना ज़रूरी होता था. आज हाल यह है कि मीडिया में भारत-चीन सीमा विवाद से ज़्यादा तवज्जो कंगना रनौत विवाद को दी जा रही है.

रिया चक्रवर्ती प्रकरण ने उन्हें नहीं बल्कि समाज की विकृतियों और स्त्री द्वेष को बेनक़ाब किया है

मध्यकालीन यूरोप में स्त्रियों को जादूगरनी बताकर ‘विच ट्रायल’ हुआ करते थे, जिनके बाद पचासों हज़ार स्त्रियों को खंभे से बांधकर जीवित जला दिया गया था. उस समय यंत्रणा देकर सभी स्त्रियों से अपराध स्वीकृति करवा ली जाती थी. रिया का भी ‘मीडिया ट्रायल’ नहीं हुआ है, ‘विच ट्रायल’ हुआ है.

आधुनिक शिक्षा व्यवस्था आदिवासियों को उनका अस्तित्व बचा पाने के रास्ते क्यों नहीं दिखा पाती

आधुनिक शिक्षा का पूरा ढांचा वर्चस्ववादी संस्कृति और मानसिकता से खड़ा किया गया है, जिसमें आदिवासी समाज कहीं फिट नहीं बैठता. उसकी पूरी जीवन शैली, जीवन दर्शन और दुनिया अलग है, जिसे वर्चस्ववादी नज़रिये से नहीं समझा जा सकता.

लोकभाषाओं के बढ़ते जश्न और घटता ओहदा

विश्व में वैज्ञानिक लेखों का दो तिहाई हिस्सा अंग्रेज़ी में लिखा जाता है और बिना अंग्रेज़ी के आजकल विद्यावर्धन नहीं हो सकता. पर यह भी महत्वपूर्ण है कि ऐसे लेखों का एक तिहाई, जो भी एक बड़ी संख्या है, दूसरी भाषाओं में है. पर इनमें भारत की बड़ी लोकभाषाएं शामिल क्यों नहीं हैं?

बेबाक: बड़े विषय को लेकर बनाई गई एक शॉर्ट फिल्म

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म मूबी पर उपलब्ध शाज़िया इक़बाल की 21 मिनट की फिल्म बेबाक एक निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार की लड़की फतिन और उसके सपनों की कहानी है.

साहित्यिक कुपाठ के निशाने पर प्रेमचंद

जून महीने के आख़िरी हफ्ते में मासिक पत्रिका हंस के संपादक संजय सहाय ने कहा कि प्रेमचंद यथास्थितिवादी, प्रतिगामी थे और उनकी 25-30 कहानियों को छोड़कर अधिकतर कहानियां ‘कूड़ा’ हैं.

कोविड-19: केंद्र ने अदालत को बताया, रासायनिक कीटाणुनाशक का छिड़काव मनुष्य के लिए हानिकारक

सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक जनहित याचिका में कोविड-19 के मद्देनज़र लोगों को कीटाणुमुक्त करने के लिए रासायनिक सुरंगों के इस्तेमाल और इसके उत्पादन रोक लगाने की मांग की गई है. इस पर अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि जब कीटाणुनाशकों का ​छिड़काव हानिकारक है तो इस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया.

कुठांव: मुस्लिम समाज में जातिवाद को उघाड़ता उपन्यास

अब्दुल बिस्मिल्लाह ने मुस्लिम समाज में मौजूद जातिवाद को कुठांव यानी मर्मस्थल की मानिंद माना है. उनके अनुसार यह एक ऐसा नाज़ुक विषय है अमूमन जिसका अस्तित्व ही अवास्तविक माना जाता है और जिसके बारे में बात करना पूरे मुस्लिम समाज के लिए एक पीड़ादायक विषय है.

यूपी: पुलिस हिरासत में युवक की मौत, थानाध्यक्ष सहित छह निलंबित

मामला श्रावस्ती ज़िले का है, जहां छेड़छाड़ के आरोप में हिरासत में लिए गए युवक वाजिद का शव लॉकअप में मिला था. युवक के परिजनों के अनुसार भूमि विवाद के चलते झूठे आरोप में फंसाकर वाजिद को गिरफ़्तार करवाया गया और फिर दो लाख रुपये रिश्वत देने से इनकार करने पर पुलिसकर्मियों ने उन्हें प्रताड़ित किया.

कोसी की बाढ़ और कटान: हर साल गुम हो रहे गांव और रहवासियों के दुखों की अनदेखी

विशेष रिपोर्ट: कोसी योजना को अमल में लाए छह दशक से अधिक समय हो चुका है. सरकारी दस्तावेज़ों में योजना के फ़ायदे गुलाबी हर्फ़ में दर्ज हैं लेकिन बुनियादी सुविधाओं से वंचित कोसीवासियों की पीड़ा बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के नाम पर लाई गई एक योजना की त्रासदी को सामने लाती है.

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