राज्यसभा सांसद और शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादक संजय राउत ने कहा कि क्या वाजपेयी का निधन 16 अगस्त को ही हुआ था या उस दिन उनके निधन की घोषणा की गई जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वतंत्रता दिवस का भाषण बाधित न हो.
राहुल गांधी की कांग्रेस को सिख दंगों से अलग करने की कोशिश वैसी ही है, जैसी मोदी ने विकास के नारे में गुजरात के दाग़ छुपाकर की थी.
एंटी-नेशनल, भारत विरोधी जैसे शब्द आपातकाल के सत्ताधारियों की शब्दावली का हिस्सा थे. आज कोई और सत्ता में है और अपने आलोचकों को देश का दुश्मन बताते हुए इसी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है.
अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी और कांग्रेस नेता करुणा शुक्ला ने कहा कि अटल की अंतिम यात्रा में पांच किलोमीटर चलने के बजाय अगर नरेंद्र मोदी उनके दिखाए गए मार्ग पर चलें तो देश के लिए अच्छा होगा.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल का आगाज़ भी भारत के कई हिस्सों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा से हुआ था.
वीडियो: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद से अमित सिंह की बातचीत.
अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे प्रधानमंत्री थे, जो सत्ता की सीमाओं और ज़िम्मेदारियों को समझते थे.
मीडिया बोल की 63वीं कड़ी में उर्मिलेश केरल की बाढ़ विभीषिका की मीडिया कवरेज और अटल बिहारी वाजपेयी पर वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी और जनता का रिपोर्टर के संपादक रिफ़त जावेद से चर्चा कर रहे हैं.
जयंती विशेष: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सातवें और अब तक के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ अपने आत्मीय रिश्ते को याद करते हुए एक बार बताया था कि कैसे राजीव ने उनकी जान बचाई थी.
1984 के राजीव गांधी और 1993 के नरसिम्हा राव की तरह वाजपेयी इतिहास में एक ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर भी याद किए जाएंगे, जिन्होंने पाठ तो सहिष्णुता का पढ़ाया, मगर बेगुनाह नागरिकों के क़त्लेआम की तरफ़ से आंखें मूंद लीं.
स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जब दीन-दुनिया से बेख़बर रहने लगे, तो क्या संघ परिवार के उन नेताओं में से ज़्यादातर ने, जो आज उनके लिए मोटे-मोटे आंसू बहा रहे हैं, कभी उनका हालचाल जानने की ज़हमत भी उठायी?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ.
नरेंद्र मोदी से इतर वे अपने ख़िलाफ़ लिखने वाले या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा निर्मित उनके विश्व बोध से इत्तेफ़ाक़ न रखने वाले पत्रकारों के प्रति भी विनम्रता और कोमलता के साथ पेश आते थे.
अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय समाज के उस मर्म को बखूबी समझते रहे कि अति की सोच भारत जैसे लोकतांत्रिक-सेक्युलर देश में संभव नहीं है. इसलिए पीएम की कुर्सी पर बैठे भी तो उन विवादास्पद मुद्दों को दरकिनार कर जिस पर देश में सहमति नहीं है.
वीडियो: गुजरात दंगों के बाद पहली बार राज्य के दौरे पर गए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जब एक पत्रकार ने पूछा कि मुख्यमंत्री के लिए क्या संदेश है तब उन्होंने कहा, ‘राजधर्म का पालन करें.’