यह ‘अच्छे स्पर्श’ और ‘बुरे स्पर्श’ की सरलीकृत बायनरी से आगे बढ़ने का वक़्त है. बच्चों के लिए न विशेष अदालतें हैं, न काउंसलिंग के इंतज़ाम हैं, न ही सुरक्षित वातावरण जिसमें वह पल-बढ़ सकें.
आवासीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ यौन अत्याचार, शोषण और उनके मरने की घटनाएं आम हो चली हैं लेकिन मुख्यधारा में कहीं भी उनकी चर्चा नहीं है.