बीते दिनों केंद्र सरकार ने कोविड-19 संबंधी ड्यूटी कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों के क्वारंटीन नियमों में बदलाव करते हुए कहा है कि उन्हें तब तक क्वारंटीन में भेजने की ज़रूरत नहीं है, जब तक उन्हें या तो बहुत अधिक ख़तरा न हो या वायरस संक्रमण के लक्षण नज़र आ रहे हों. दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों के डॉक्टरों द्वारा इसका विरोध किया गया है.
निज़ामुद्दीन मरकज़ में कोरोना संक्रमण मिलने के बाद तबलीग़ी जमात के क़रीब हज़ार लोगों को नरेला के एक सेंटर में क्वारंटीन किया गया था. देश के विभिन्न हिस्सों आए इन लोगों का कहना है कि अधिकतर लोगों की कोविड-19 रिपोर्ट नेगेटिव होने और क्वारंटीन की तय अवधि पूरी होने के बावजूद उन्हें घर नहीं जाने दिया जा रहा है.
लॉकडाउन शुरू होने के कुछ रोज़ में ही एक मैसेज मिला, 'लगता है कलयुग समाप्त हो गया, सतयुग आ गया है, प्रदूषण रहित वातावरण, कोई नौकर नहीं, घर में सब मिलकर काम कर रहे हैं, उपवास-कीर्तन हो रहा है.' ठीक इन्हीं दिनों हज़ारों कामगारों का हुजूम भूखे-प्यासे एक बीमारी और अनिश्चित भविष्य के डर से महानगरों की सड़कों पर अपनी टूटी चप्पल और फटा बैग संभाले निकल रहा था.
गृह मंत्रालय की ओर से स्पष्ट किया गया है कि उन्हें ही वापस लाया जाएगा, जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण नहीं होंगे. कहा गया है कि विमान और पोत द्वारा यात्रा का प्रबंध किया जाएगा और इसका ख़र्च यात्रियों को वहन करना होगा.
गोरखपुर ज़िले के भटहट क्षेत्र के एक गांव के रहने वाले राजेंद्र और धर्मेंद्र निषाद हैदराबाद में काम करते थे, जहां लॉकडाउन के दौरान राजेंद्र की तबियत बिगड़ी और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. गांव की ज़मीन गिरवी रख और क़र्ज़ लेकर किसी तरह उन्हें घर लाया जा रहा था, जब उन्होंने गांव के रास्ते में दम तोड़ दिया.
अंडमान निकोबार के एक स्वतंत्र पत्रकार जुबैर अहमद ने ट्विटर पर स्थानीय प्रशासन से पूछा था कि कोविड-19 के मरीज़ से फोन पर बात करने पर लोगों को क्वारंटीन क्यों किया जा रहा है. पुलिस का कहना है कि वे ग़लत जानकारी फैला रहे थे.