हम भी भारत की चौथी कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी द वायर में जय अमित शाह की कंपनी से जुड़ी रिपोर्ट लिखने वाली पत्रकार रोहिणी सिंह, कॉमन कॉज़ संस्था के विपुल मुद्गल और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु के साथ चर्चा कर रही हैं.
आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है. देश की कुल आबादी के 9 फ़ीसदी लोग दिमाग़ी मरीज़ हैं. भारत में 66 हज़ार से ज़्यादा मनोचिकित्सक चाहिए, पर हैं लगभग 4000. ऐसे में बुनियादी ढांचे को मज़बूत करना सबसे ज़रूरी है.
आपके अभियान की भाषा केवल परिवार के मुखियाओं को संबोधित कर रही है. नई पीढ़ी से संवाद का अभाव इसमें दिख रहा है.
30 बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. फिलहाल सभी बच्चों की हालत खतरे से बाहर होने की ख़बर.
जायसी का ‘पद्मावत’ युद्ध की व्यर्थता को दिखाने वाली रचना है. यह प्रेम की पीड़ा को रेखांकित करने वाला काव्य है. क्या भंसाली की फिल्म में प्रेम की ये पीड़ा दिखेगी?
मीडिया बोल की 18वीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश केरल में जारी भाजपा-माकपा संघर्ष और गुजरात में दलितों पर हो रहे हमले को लेकर वरिष्ठ पत्रकार वीके चेरियन और पूर्णिमा जोशी से चर्चा कर रहे हैं.
पत्रकार रोहिणी सिंह द्वारा जय अमित शाह को भेजे गए सवालों पर उनके वकील मानिक डोगरा का जवाब.
‘द वायर’ में प्रकाशित रोहिणी सिंह की रिपोर्ट पर जय अमित शाह का जवाब.
विशेष रिपोर्ट: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह के बेटे जय शाह के व्यवसाय में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
चे की बेटी एलीडा कहती हैं, ‘अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पागलपन से मानवता नष्ट हो सकती है.’
क्या अंग्रेज़ी अख़बारों में छपी ख़बरों का हिंदी में अनुवाद करने पर भी मानहानि हो जाती है? अनुवाद की ख़बरों या पोस्ट से मानहानि का रेट कैसे तय होता है, शेयर करने वालों या शेयर किए गए पोस्ट पर लाइक करने वालों पर मानहानि का रेट कैसे तय होता है?
अरुणाचल प्रदेश के तवांग में शुक्रवार को दुर्घटनाग्रस्त हुआ था वायु सेना का हेलीकॉप्टर.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर लगाई गई रोक 31 अक्टूबर तक जारी रहेगी.
यूजीसी के एक पैनल ने सुझाव दिया है कि हिंदू और मुस्लिम शब्द इन विश्वविद्यालयों की धर्मनिरपेक्ष छवि को नहीं दिखाते हैं.
यह ‘अच्छे स्पर्श’ और ‘बुरे स्पर्श’ की सरलीकृत बायनरी से आगे बढ़ने का वक़्त है. बच्चों के लिए न विशेष अदालतें हैं, न काउंसलिंग के इंतज़ाम हैं, न ही सुरक्षित वातावरण जिसमें वह पल-बढ़ सकें.