वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, बैंकों ने वित्त वर्ष 2018-19, और वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तीन तिमाहियों के दौरान क्रमश: 2.36 लाख करोड़ रुपये और 2.34 लाख करोड़ रुपये के ऋण को बट्टे खाते में डाला है. ऐसे ऋण जिसकी वसूली नहीं हो पाती है, बैंक उन्हें बट्टे खाते में डाल देते हैं.
सूचना के अधिकार के तहत रिज़र्व बैंक से डिफाल्टरों के नाम की जानकारी मांगी गई थी.
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस सालों में सात लाख करोड़ से ज़्यादा का बैड लोन राइट ऑफ हुआ यानी न चुकाए गए क़र्ज़ को बट्टे खाते में डाला गया, जिसका 80 फीसदी जो लगभग 5,55,603 करोड़ रुपये है, बीते पांच सालों में बट्टे खाते में डाला गया.
बैंकों द्वारा बट्टा खाते में डाली गई यह राशि पिछले साल की तुलना में 61.8 प्रतिशत ज़्यादा है. पिछली साल बैंकों द्वारा 89,048 करोड़ रुपये बट्टा खाते में डाले गए थे.
जन गण मन की बात की 255वीं कड़ी में विनोद दुआ बढ़ते एनपीए और वाराणसी को लेकर दिए गए केंद्रीय मंत्री केजे अल्फोंस के बयान पर चर्चा कर रहे हैं.
आंकड़े बीते वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही के हैं. वहीं, पूरे वर्ष के दौरान बैंक को 6,547 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ. पिछले वित्त वर्ष 2016-17 में बैंक ने 10,484 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था.
आरबीआई गवर्नर पटेल ने पीएनबी घोटाले पर कहा, ‘मैंने आज बोलना इसलिए तय किया ताकि यह बता सकूं कि बैंकिंग क्षेत्र के घोटाले एवं अनियमितताओं से आरबीआई भी गुस्सा, तकलीफ और दर्द महसूस करता है.’
वित्त मंत्रालय ने कहा कि एनपीए में करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारी शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास फंसे क़र्ज़ का है.