1925 में आए प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि में किसान सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ खड़े हो जाते हैं. जो बात रंगभूमि में सूरदास ने कहने की कोशिश की थी, वही आज जब कोई किसान कह रहा है तो उसे निशाना साधकर गोली मारी जा रही है.
अब जल्द ही पश्चिम बंगाल जाने वाले यात्री एक ऐसी ट्रेन से यात्रा कर सकते हैं जिसका नाम महाश्वेता देवी के किसी उपन्यास पर रखा जाएगा.