ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ बता रहे हैं कि ट्रोल्स को गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत नहीं है.
गोविंद पानसरे और नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जांच की निगरानी का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी की.
इतिहासकार गुहा ने ट्वीट किया था, ‘आज के भारत में स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों को प्रताड़ित किया जा रहा, यहां तक कि हत्या कर दी जा रही, लेकिन हमें चुप नहीं किया नहीं जा सकता.'
अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि 2015 से अब तक सरकार की आलोचना करने वाले नौ पत्रकारों की हत्या कर दी गई.
इंटरपोल ने इन संदिग्धों में से चार के नाम मडगांव बम धमाके में शामिल होने के आरोप में रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया था.
जन गण मन की बात की 130वीं कड़ी में विनोद दुआ अर्थव्यवस्था पर प्रधानमंत्री के भाषण और पत्रकारों के ख़िलाफ़ हिंसा पर चर्चा कर रहे हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर लिखती हैं, ‘मेरे लिए महज एक हिंदू होने से ज़्यादा ज़रूरी इंसान होना है. इस साल दीवाली पर मेरे घर में तो अंधेरा रहेगा, लेकिन मेरे मन का कोई कोना ज़रूर रोशन होगा.’
बाद में अभिनेता ने कहा, ‘मैं मूर्ख नहीं हूं कि ख़ुद को मिले राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दूं. यह मुझे मेरे काम की वजह से मिला है और मुझे इस पर गर्व है.’
वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या पांच सितंबर को बेंगलुरु स्थित उनके घर में कर दी गई थी.
संघ प्रमुख ने कहा, उनका संगठन ट्रोलिंग और इंटरनेट पर आक्रामक आचरण का समर्थन नहीं करता क्योंकि यह गरिमा के अनुकूल नहीं होते हैं.
वॉशिंगटन में राहुल बोले, नोटबंदी से लाखों छोटे कारोबार तबाह हो गए. नोटबंदी का फ़ैसला आर्थिक सलाहकार या संसद की सलाह के बिना लिया गया. इससे अर्थव्यवस्था को काफ़ी नुकसान हुआ.
मीडिया बोल की उर्मिलेश, वरिष्ठ पत्रकार अक्षय मुकुल और पत्रकार नेहा दीक्षित के साथ गौरी लंकेश की हत्या पर सियासत और उसके मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
अंग्रेज़ी प्रभावशाली भाषा है, मगर इसकी पहुंच सीमित है. क्षेत्रीय भाषाओं के पत्रकार असली असर पैदा कर सकते हैं. छोटे शहरों के ऐसे कई साहसी पत्रकार हैं, जिन्होंने अपने साहस की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई है.
इस हफ़्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा के प्रमुख समाचार.
भाजपा सांसद ने लिखा, ‘मुंबई ताज हमले में शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन बेंगलुरु से हैं. उन्हें राज्य सरकार द्वारा 21 बंदूकों की सलामी नहीं दी गई!’