आखिर क्या बात है कि खेती-किसानी हो, अर्थव्यवस्था के दूसरे हिस्से हों, विश्वविद्यालय हों या स्कूल, हिंदी अख़बारों या चैनलों से हमें न तो सही जानकारी मिलती है, न आलोचनात्मक विश्लेषण? क्यों सारे हिंदी जनसंचार माध्यम सरकार की जय-जयकार में जुट गए हैं?
आखिर क्या बात है कि खेती-किसानी हो, अर्थव्यवस्था के दूसरे हिस्से हों, विश्वविद्यालय हों या स्कूल, हिंदी अख़बारों या चैनलों से हमें न तो सही जानकारी मिलती है, न आलोचनात्मक विश्लेषण? क्यों सारे हिंदी जनसंचार माध्यम सरकार की जय-जयकार में जुट गए हैं?