लोकपाल के पास प्रधानमंत्री समेत सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने का अधिकार होता है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 में जितनी शिकायतें मिलीं, उससे अगले वर्ष 92 प्रतिशत कम शिकायतें आई हैं. लोकपाल को 2019-20 में भ्रष्टाचार की 1427 शिकायतें मिली थीं.
लोकपाल के अनुसार, कुल शिकायतों में से 1,347 का निस्तारण किया गया. इनमें से 1,152 शिकायतें लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर की थीं. शिकायतों में से 245 शिकायतें केंद्र सरकार के अधिकारियों के विरुद्ध थीं.
अगर प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत को खारिज किया जाता है तो इसका कोई कारण नहीं बताया जाएगा. वहीं केंद्रीय मंत्री या संसद के सदस्यों के खिलाफ मामला है तो इस संबंध में लोकपाल के कम से कम तीन सदस्यों की पीठ फैसला लेगी.
लोकपाल का अभी तक कोई स्थायी कार्यालय नहीं है. फिलहाल ये नई दिल्ली के अशोका होटल से काम कर रहा है. लोकपाल को अब तक कुल 1,160 शिकायतें मिली हैं लेकिन किसी भी मामले में जांच शुरू नहीं हुई है.
लोकपाल के अध्यक्ष और इसके सदस्यों की नियुक्ति में सत्ता पक्ष के सदस्यों की संख्या अधिक थी और चयन में पूरी तरीके से गोपनीयता बरती गई. ऐसा करना लोकपाल कानून के प्रावधानों का पूरी तरह से उल्लंघन है. चयन प्रक्रिया से समझौता करके मोदी सरकार ने कामकाज शुरू करने से पहले ही लोकपाल संस्था को कमजोर कर दिया है.
लोकपाल अध्यक्ष चुनने में हुई देरी और लंदन में हीरा व्यापारी नीरव मोदी की गिरफ़्तारी पर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का नजरिया.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीसी घोष को देश के पहले लोकपाल के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी दी. इसके अलावा लोकपाल में आठ सदस्यों की नियुक्ति भी की गई.