जयपुर में एक निजी विश्वविद्यालय में कार्यक्रम के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत को पांच हजार अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हमें एक अच्छी तरह से सोची समझी रणनीति की जरूरत है.
वीडियो: मीडिया बोल के इस अंक में भारतीय अर्थव्यवस्था के गिरते स्तर पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ पत्रकार पूजा मेहरा, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की छात्रा आकृति भाटिया और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु के साथ चर्चा कर रहे हैं.
कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और रिफाइनरी उत्पादों के उत्पादन में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई.
बिहार के उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सुशील मोदी ने कहा कि वैसे तो हर साल सावन-भादो में मंदी रहती है, लेकिन इस बार मंदी का ज्यादा शोर मचा कर कुछ लोग चुनावी पराजय की खीझ उतार रहे हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछली तिमाही में जीडीपी केवल 5 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जो इस ओर इशारा करती है कि हम एक लंबी मंदी के दौर में हैं. भारत में ज्यादा तेजी से वृद्धि करने की क्षमता है, लेकिन मोदी सरकार के चौतरफा कुप्रबंधन के चलते अर्थव्यवस्था में मंदी छा गई है.
इससे पहले वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर इतनी कम थी. उस समय ये दर 4.9 फीसदी पर थी.
प्रमुख नीतिगत दर रेपो में पहली बार 0.35 प्रतिशत की चौंकाने वाली कटौती करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि अर्थव्यवस्था को अधिक समर्थन की जरूरत है, इसलिए मेरा मानना है कि नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की परंपरागत कटौती कम होगी.
बीते दो-तीन महीने से भारी दबाव झेल रहे वाहन उद्योग क्षेत्र में 10 लाख से अधिक नौकरियों पर ख़तरा मंडरा रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार वाहनों की गिरती बिक्री के कारण करीब 300 डीलर अपने स्टोर बंद करने पर मजबूर हैं, जिसके चलते करीब दो लाख नौकरियां जा सकती हैं.
अगर केंद्र की मोदी सरकार को विदेशों से डॉलर में क़र्ज़ लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है तो इसके पीछे पिछले पांच वर्षों के दौरान पनपने वाले आर्थिक संकट का हाथ है.
जो लोग इस बजट से भाजपा के चुनावी वादों को पूरा करने के किसी रोडमैप की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें इस बजट में एक भी बड़ा विचार या कोई बड़ी पहल दिखाई नहीं दी. रोजगार सृजन और कृषि को फायदेमंद बनाने जैसे मसले पर चुप्पी हैरत में डालने वाली है.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट काफी अच्छी-अच्छी बातें करता है, लेकिन जब एक बड़ी तस्वीर बनाने की कोशिश करते हैं, तो इसमें काफी दरारें दिखाई देती हैं.
जब तक भूमंडलीकरण की आर्थिक नीतियों में कोई निर्णायक परिवर्तन नहीं होता, भारत विश्वशक्ति बन जाए तो भी, सरकार का सारा बोझ ढोने वाले निचले तबके की यह नियति बनी ही रहने वाली है कि वह तलछट में रहकर विश्वपूंजीवाद के रिसाव से जीवनयापन करे.
लोकपाल के लिए आवंटित किए गए बजट को निर्माण और स्थापना संबंधी कार्यों में ख़र्च किया जाएगा.
पहले 250 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली कंपनियों पर 25 प्रतिशत की दर से कॉरपोरेट कर लगता था. इसके अलावा दो से पांच करोड़ और पांच करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करने वालों पर सरचार्ज बढ़ाया गया है.
सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भरता घटाने के लिए बजट में इलेक्ट्रिक वाहनों को कई तरह के प्रोत्साहन दिया है. इलेक्ट्रानिक वाहनों की खरीद को लेकर लिए गए कर्ज पर 1.5 लाख रुपये तक के ब्याज पर आयकर छूट दिया जाएगा.