ये धमाके राजधानी काबुल के पश्चिम में स्थित शिया बहुल इलाके दश्त-ए-बारची में हुए हैं. इन हमलों में हाज़रा समुदाय को निशाना बनाया गया, जहां ये धमाके किए गए वहां अधिकांश हाज़रा शिया मुसलमान हैं. पिछले महीने अमेरिका और नाटो सैनिकों द्वारा इस साल 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से निकलने की घोषणा के बाद यह हमला किया गया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि न्यूयॉर्क में 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले के 20 साल पूरे होने से पहले अमेरिकी सैनिकों के साथ नाटो के देशों और अन्य सहयोगी देशों के सैनिक भी अफ़गानिस्तान से वापस आएंगे. अफ़गानिस्तान से कुल 2,500 अमेरिकी सैनिकों की वापसी की यह प्रक्रिया 1 मई से शुरू होगी.
दोहा के एक आलीशान होटल में तालिबान के वार्ताकार मुल्ला बिरादर ने समझौते पर हस्ताक्षर किए वहीं दूसरी ओर से अमेरिका के वार्ताकार ज़लमय खलीलजाद ने हस्ताक्षर किए. मुल्ला बिरादर ने अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया में सहयोग के लिए पाकिस्तान के साथ चीन, ईरान और रूस का जिक्र किया. हालांकि, इस दौरान उन्होंने भारत का जिक्र नहीं किया.
तालिबान ने अफगानिस्तान में अमेरिकी बलों के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखने की मंगलवार को प्रतिबद्धता जताते हुए कहा कि बातचीत बंद करने के लिए अमेरिका को अफसोस होगा.
पाकिस्तान के सांप्रदायिक एजेंडे के लिए नरेंद्र मोदी की एक और जीत से अच्छा कुछ नहीं हो सकता है. उनकी नीतियों ने पाकिस्तानियों को यह यक़ीन दिलाने का काम किया है कि भारत में मुस्लिम कभी भी सुरक्षित नहीं रह सकते हैं.
पाकिस्तान में सहवान शरीफ़ और अलग-अलग सूफ़ी दरगाहों पर हाल ही के सालों में हुए आतंकी हमले दिखाते हैं कि इस्लामी आतंकी लोगों में सूफ़ी इस्लाम की बढ़ती लोकप्रियता से डरा हुआ महसूस कर रहे हैं.