कोरोना संकट के दौर में शैक्षणिक संस्थानों के आगे जो चुनौती है उसमें ऑनलाइन एक स्वाभाविक विकल्प है. ऐसे समय में विद्यार्थियों से जुड़ना समय की ज़रूरत है, लेकिन इस व्यवस्था को कक्षाओं में आमने-सामने दी जाने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकल्प बताना भारत के भविष्य के लिए अन्यायपूर्ण है.
आईआईएमसी के छात्रों ने कहा कि प्रशासन द्वारा उनकी मांगे माने जाने के बाद उन्होंने शुल्क वृद्धि के खिलाफ अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी है. प्रशासन ने दूसरे सेमेस्टर की फीस जमा करने की अंतिम तिथि 31 मार्च, 2020 तक या नई शुल्क संरचना जारी होने तक बढ़ा दी है.
भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्रों ने बताया कि पिछले साल दिसंबर में प्रशासन ने एक समिति बनाने की घोषणा की थी जो शुल्क के मुद्दे पर दो मार्च तक अपनी सिफारिशें देने वाली थी. अब प्रशासन की ओर से फीस जमा करने के लिए नया सर्कुलर जारी किया गया है.
असंगत शिक्षण शुल्क के ख़िलाफ़ नई दिल्ली स्थित आईआईएमसी के छात्र बीते तीन दिसंबर से ही धरने पर बैठे थे. अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल का अल्टीमेटम दिए जाने के बाद प्रशासन ने कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाने और फीस की समीक्षा करने की बात कही है. इसके साथ ही अगले आदेश तक सेकेंड सेमेस्टर की फीस जमा करने के सर्कुलर पर रोक लगा दी गई है.
जेएनयू में फीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध के बीच भारतीय जनसंचार संस्थान में भी फीस बढ़ाने को लेकर विरोध शुरू हो गया है. बीते 10 सालों में दोगुनी से अधिक बढ़ चुकी फीस को कम करने की मांग को लेकर संस्थान के छात्र पिछले तीन दिनों से धरने पर बैठे हैं.
अजीब बात है कि देश के प्रधानमंत्री लगातार पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने की बात कह रहे हैं लेकिन 5000 बच्चों को पढ़ाने के लिए देश की सरकार के पास पैसा नहीं है.
वीडियो: दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में बीते तीन हफ्तों से फीस बढ़ोतरी को लेकर छात्र संगठनों का प्रदर्शन जारी है. इस मुद्दे पर द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी, द वायर के पत्रकार अविचल दुबे, आईसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एनसाई बालाजी और जेएनयू के छात्र अनिकेत सिंह के साथ चर्चा कर रही हैं.
तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय, कांग्रेस सदस्य टीएन प्रतापन और बसपा के कुंवर दानिश अली ने लोकसभा में शून्यकाल के दौरान ये मुद्दा उठाया.
मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने फीस वृद्धि पर छात्रों के विरोध को लेकर उनसे और प्रशासन से बात करने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसमें यूजीसी के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर वीएस चौहान, एआईसीटीई के चेयरमैन प्रोफेसर अनिल सहस्त्रबुद्धे और यूजीसी के सचिव प्रोफेसर रजनीश जैन शामिल हैं.
उच्च शिक्षा का निजीकरण ऐसे सभी प्रावधानों को खत्म कर देगा,जिससे उस तक वंचित जमात पहुंच रहा था. अगर इस मुल्क को बचाना है तो पहले उच्च शिक्षा को बाज़ारीकरण से बचाना होगा.