यह घटना औरंगाबाद में बदनापुर और करमाड के बीच हुई. सभी मज़दूर औरंगाबाद से मध्य प्रदेश जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए पैदल जा रहे थे और थककर रेल पटरियों पर ही सो गए थे.
लॉकडाउन शुरू होने के कुछ रोज़ में ही एक मैसेज मिला, 'लगता है कलयुग समाप्त हो गया, सतयुग आ गया है, प्रदूषण रहित वातावरण, कोई नौकर नहीं, घर में सब मिलकर काम कर रहे हैं, उपवास-कीर्तन हो रहा है.' ठीक इन्हीं दिनों हज़ारों कामगारों का हुजूम भूखे-प्यासे एक बीमारी और अनिश्चित भविष्य के डर से महानगरों की सड़कों पर अपनी टूटी चप्पल और फटा बैग संभाले निकल रहा था.
कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन में फंसे मजदूरों की समस्याओं के शीघ्र समाधान की मांग करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा कस्बे के निकट विरोध प्रदर्शन किया.
ये ट्रेनें हैदराबाद, खम्मम, वारंगल समेत अन्य स्टेशनों से चलाई जाएंगी. इनके जरिये बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों के प्रवासी मज़दूरों को उनके घर भेजा जाएगा.
केंद्र सरकार ने बीते सोमवार को दावा किया कि ट्रेन से आवागमन का 85 फीसदी खर्च वह उठा रही है और 15 फीसदी खर्च राज्य सरकारों को वहन करना होगा. हालांकि इस संबंध में अभी तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है.
मामला मध्य प्रदेश के गुना जिले का है. जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि मजदूर ने शराब पी रखी थी, वह नशे में शौचालय में पहुंच गया. पत्नी ने भोजन भी नशे में शौचालय में करा दिया.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है अगर आप विदेश में फंसे हैं तो सरकार आपको विमान से नि:शुल्क लाएगी, लेकिन यदि आप एक प्रवासी श्रमिक हैं तो किराया चुकाने के लिए तैयार रहें. माकपा नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा नेता अखिलेश यादव आदि ने भी आलोचना की है.
रेलवे ने प्रवासी मजदूरों की आवाजाही के लिए देशभर में श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं. केंद्र सरकार ने इनमें यात्रा करने वालों से किराया लेने के दिशानिर्देश जारी किए हैं. राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी शुरुआती 50 ट्रेनों का किराया देने की बात कही है.
झारखंड सरकार ने लॉकडाउन में दूसरे राज्यों में फंसे मज़दूरों को आर्थिक मदद देने के लिए एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया था, लेकिन ऐसे ज़्यादातर मज़दूरों का कहना है कि स्मार्टफोन न होने, निरक्षरता या तकनीकी मुश्किलों जैसी कई वजहों से वे अब तक सरकार की मदद से महरूम हैं.
महाराष्ट्र के चंद्रपुर में भी लगभग 1,000 प्रवासी मजदूर सड़कों पर उतर आए थे. ये मजदूर प्रशासन से उनकी घर वापसी की मांग कर रहे थे.
गोरखपुर ज़िले के भटहट क्षेत्र के एक गांव के रहने वाले राजेंद्र और धर्मेंद्र निषाद हैदराबाद में काम करते थे, जहां लॉकडाउन के दौरान राजेंद्र की तबियत बिगड़ी और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. गांव की ज़मीन गिरवी रख और क़र्ज़ लेकर किसी तरह उन्हें घर लाया जा रहा था, जब उन्होंने गांव के रास्ते में दम तोड़ दिया.
महाराष्ट्र के भिवंडी से उत्तर प्रदेश के महराजगंज ज़िले स्थित अपने घर पहुंचने के लिए साइकिल से निकले एक अन्य प्रवासी कामगार की मौत मध्य प्रदेश के बड़वानी में हो गई है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के महराजगंज के सात मज़दूर काम करने हैदराबाद गए थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया. ऐसे में उन्होंने थोड़ी-बहुत जमापूंजी से साइकिल खरीदी और घर की ओर निकल पड़े.
चार दिन पहले सात मजदूर दिल्ली से बिहार जाने के लिए साइकिल से निकले थे. उसमें से एक मजदूर की तबीयत बिगड़ने के बाद उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में मौत हो गई. बाकी छह मजदूरों को जिला प्रशासन ने क्वारंटीन कर दिया है और उनके सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं.
कोरोना वायरस के मद्देनजर लॉकडाउन में फंसे लोगों को उनके घर पहुंचाने के लिए चलने वाली यह पहली ट्रेन है. आमतौर पर ट्रेन की एक बोगी में 72 लोग बैठते हैं, लेकिन इसमें सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए 54 लोगों को बैठाया गया है.