एक महीने से भी कम समय में यह तीसरी बार है, जब मणिपुर में समाचार पत्रों का प्रकाशन और ख़बरों का प्रसारण नहीं हुआ. छह दिन पहले भी इसी तरह का विरोध जताया गया था, जब इम्फाल से प्रकाशित होने वाले एक स्थानीय अख़बार को आतंकी समूह ने धमकी दी थी.
मणिपुर के एक स्थानीय अखबार पोकनाफाम को बंद किए जाने की धमकी मिलने के बाद विरोध के तौर पर यहां के मीडिया संस्थानों ने शुक्रवार से 48 घंटे तक काम न करने का निर्णय लिया है. बीते 13 फरवरी को इसी अख़बार के दफ़्तर पर अज्ञात हमलावरों ने ग्रेनेड फेंका था.
बीते 13 फरवरी की शाम को इंफाल पश्चिम ज़िले के कीशामपाट थियाम लीकाई में पोकनाफाम अख़बार के दफ़्तर पर हैंड ग्रेनेड फेंका गया था, जिसके विरोध में पत्रकारों ने धरना दिया. उन्होंने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपते हुए अपील की कि राज्य में प्रेस के स्वतंत्र रूप से काम करना सुनिश्चित किया जाए.
जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद आरोप लगाया है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में उनके ख़िलाफ़ विद्वेषपूर्ण मीडिया अभियान चलाया गया. याचिका में दावा किया गया है कि मीडिया रिपोर्टों में उनके एक कथित बयान से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि उन्होंने दंगों में अपनी संलिप्तता कबूल कर ली है. यह निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार के प्रति पूर्वाग्रह है.
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जान गंवाने वाले पत्रकारों में से 68 प्रतिशत की जान संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के बाहर गई. साल 2020 में पत्रकारों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करने के मामलों में वृद्धि हुई और ये 84 प्रतिशत हो गए हैं.
प्रेस एसोसिएशन और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन भेजा है. इनका कहना है कि पूछताछ के नाम पर दिल्ली के पुलिस थानों में पुलिस द्वारा घंटों इंतज़ार कराए जाने से उनका कामकाज बुरी तरह से प्रभावित होता है.
वीडियो: ख़बरें देने के नाम पर भारतीय टीवी चैनलों पर कोई 'यूपीएससी ज़िहाद' दिखा रहा है, तो कोई पढ़े-लिखों को किसी झूठे केस में फंसाने की सियासी साज़िश में जुटा है. मीडिया बोल की इस कड़ी में इन्हीं मुद्दों पर सत्य हिंदी के संपादक शीतल सिंह और वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता से चर्चा कर रहे हैं उर्मिलेश.
वीडियो: मंडल आयोग की सिफ़ारिशों के लागू करने की घोषणा के तीन दशक हो रहे हैं. इस मुद्दे पर दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव, लेखक एवं पत्रकार डॉ. सिद्धार्थ और वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह से वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की बातचीत.
कोविड संक्रमण के ख़तरे के बीच भी देशभर के मीडियाकर्मी लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन मीडिया संस्थानों की संवेदनहीनता का आलम यह है कि जोखिम उठाकर काम रहे इन पत्रकारों को किसी तरह का बीमा या आर्थिक सुरक्षा देना तो दूर, उन्हें बिना कारण बताए नौकरी से निकाला जा रहा है.
दो जून को जारी जम्मू कश्मीर की नई मीडिया नीति के अनुसार, सरकार अख़बारों और अन्य मीडिया चैनलों पर आने वाली सामग्री की निगरानी कर यह तय करेगी कि कौन-सी ख़बर 'फेक, एंटी सोशल या एंटी-नेशनल' है. ऐसा पाए जाने पर संबंधित संस्थान को सरकारी विज्ञापन नहीं दिए जाएंगे, साथ ही उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी.
अंडमान निकोबार के एक स्वतंत्र पत्रकार जुबैर अहमद ने ट्विटर पर स्थानीय प्रशासन से पूछा था कि कोविड-19 के मरीज़ से फोन पर बात करने पर लोगों को क्वारंटीन क्यों किया जा रहा है. पुलिस का कहना है कि वे ग़लत जानकारी फैला रहे थे.
केंद्र सरकार की उपक्रम एक कंपनी द्वारा उन पर किए स्टिंग ऑपरेशन के लिए एक समाचार चैनल पर मानहानि का मुकदमा किया गया था. इसे ख़ारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि स्टिंग ऑपरेशन समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं क्योंकि वे ग़लत कामों के खुलासे में मदद करते हैं.
मानहानि के एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रेस द्वारा कुछ अवसरों पर गड़बड़ियां हो सकती हैं लेकिन लोकतंत्र के व्यापक हित को देखते हुए इन्हें नज़रअंदाज़ करने की ज़रूरत होती है.
अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे प्रधानमंत्री थे, जो सत्ता की सीमाओं और ज़िम्मेदारियों को समझते थे.
अपने देश में प्रेस की आज़ादी बचाए रखने के लिए दिया जाता है यह अवॉर्ड.