जब संघ प्रमुख के कार्यक्रम को भाव न देने पर पत्रकार श्यामा प्रसाद को नौकरी गंवानी पड़ी

पुण्यतिथि विशेष: पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्यामा प्रसाद ‘प्रदीप’ का सिद्धांत था, ‘पत्रकार को नौकरी बचाने के फेर में पड़े बिना ही काम करना चाहिए वरना पत्रकारिता छोड़ कुछ और करना चाहिए.’

कहीं अमित शाह अपने गुनाहों के इतने ग़ुलाम तो नहीं हो चुके कि हार से डर लगने लगा?

संस्थाएं ग़ुलाम हो चुकी हैं. मीडिया बाकायदा गोदी मीडिया हो चुका है, सब कुछ आपकी आंखों के सामने मैनेज होता दिख रहा है, फिर भी अमित शाह को क्यों डर लगता है कि 2019 में हार गए तो ग़ुलाम हो जाएंगे? क्या वे भाजपा के कार्यकर्ताओं को डरा रहे हैं? जीत के प्रति जोश भरने का यह कौन-सा तरीक़ा हुआ कि हार जाएंगे तो ग़ुलाम हो जाएंगे?

मीडिया बोल, एपिसोड 81: ‘प्लायबल’ मीडिया, एडिटर्स गिल्ड और पत्रकारिता का संकट

मीडिया बोल की 81वीं कड़ी में उर्मिलेश नरेंद्र मोदी के साक्षात्कार, मणिपुर में पत्रकार की गिरफ़्तारी और सबरीमाला मंदिर में हड़ताल कवर करने गई कैमरापर्सन शजिला से आंदोलनकारियों के दुर्व्यवहार पर हिंदुस्तान टाइम्स के पॉलिटिकल एडिटर विनोद शर्मा, द ट्रिब्यून की डिप्टी एडिटर स्मिता शर्मा और वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता से चर्चा कर रहे हैं.

मीडिया बोल, एपिसोड 79: पत्रकार गिरफ़्तारी, लोगों की जासूसी और अंबानी घराने में शादी

मीडिया बोल की 79वीं कड़ी में उर्मिलेश मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम की गिरफ़्तारी, सरकार द्वारा लोगों के कम्प्यूटरों की निगरानी और अंबानी घराने में हुई शादी पर वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया, वरिष्ठ पत्रकार संगीता बरुआ पिशारोती और वरिष्ठ पत्रकार शीतल प्रशाद सिंह से चर्चा कर रहे हैं.

मणिपुर यूनिवर्सिटी में इम्फाल से छपने वाले अख़बारों का बहिष्कार

मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की आलोचना करने पर रासुका के तहत गिरफ़्तार किए गए पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम के प्रति स्थानीय पत्रकारों के 'पक्षपातपूर्ण' रवैये पर विरोध ज़ाहिर करते हुए मणिपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ ने परिसर में इम्फाल से निकलने वाले अख़बारों के बहिष्कार की घोषणा की है.

मणिपुर: राज्य सरकार और मुख्यमंत्री की आलोचना करने वाले पत्रकार को एक साल की जेल

इम्फाल के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम को बीते 26 नवंबर को सोशल मीडिया पर राज्य की भाजपा सरकार की आलोचना करते वीडियो अपलोड करने और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को कथित तौर पर अपमानजनक शब्द बोलने के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था.

मीडिया बोल एपिसोड 78: पांच राज्यों के चुनाव नतीजे, मीडिया और 2019

मीडिया बोल की 78वीं कड़ी में उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार क़ुर्बान अली और प्रोफेसर विवेक कुमार से पांच राज्यों के चुनाव नतीजों पर चर्चा कर रहे है.

ज़ी न्यूज़ के शो में भाजपा और सपा प्रवक्ताओं में हाथापाई, हिरासत में लिए गए सपा नेता रिहा

नोएडा स्थित ज़ी न्यूज़ के शो में भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया और समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया के बीच हुई झड़प. भाजपा प्रवक्ता ने पुलिस में की थी शिकायत.

मीडिया बोल, एपिसोड 78: अयोध्या रथयात्रा या चुनाव से पहले फिर दंगा यात्रा!

मीडिया बोल की 78वीं कड़ी में उर्मिलेश संघ परिवार के ‘अयोध्या मामले’ की वापसी और मीडिया के रुख़ के बारे में प्रो. अपूर्वानंद और एडवोकेट विराग गुप्ता से चर्चा कर रहे हैं.

मणिपुर: मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की आलोचना करने पर पत्रकार रासुका के तहत गिरफ़्तार

इम्फाल के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम को सोशल मीडिया पर राज्य की भाजपा सरकार की आलोचना करते वीडियो अपलोड करने और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को कथित तौर पर अपमानजनक शब्द बोलने के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ़्तार किया गया है

जागरण समूह के अख़बार ने सामाजिक कार्यकर्ता को बताया ‘माओवादी’

जागरण समूह के अख़बार नई दुनिया ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता नंदिनी सुंदर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार को भेजे गए नोटिस की ख़बर में सुंदर को माओवादी कार्यकर्ता बताया है.

द वायर के पत्रकार नूर मोहम्मद का निधन 

पिछले कुछ समय में नूर ने अपनी रिपोर्ट्स से देश के ऊर्जा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया था. इन्हीं में से एक रिपोर्ट पर देश के बड़े कॉरपोरेट घराने द्वारा मानहानि का मुकदमा भी किया गया है.

मीडिया बोल, एपिसोड 77: संघ-भाजपा की अयोध्या और ‘ट्विटर डेमोक्रेसी’

मीडिया बोल की 77वीं कड़ी में उर्मिलेश संघ-भाजपा के मंदिर-मस्जिद, चुनाव और 'ट्विटर डेमोक्रेसी' पर वरिष्ठ पत्रकार क़ुर्बान अली, सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा बांगर और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश से चर्चा कर रहे हैं.

अयोध्या: मीडिया 1992 की तरह एक बार फिर सांप्रदायिकता की आग में घी डाल रहा है

अयोध्या में 1990-92 में प्रिंट मीडिया का प्रभुत्व था, अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उसे पीछे धकेलकर सांप्रदायिक पत्रकारिता का परचम उससे छीन लिया है और ख़ुद को राम मंदिर आंदोलन का अघोषित प्रवक्ता बना लिया है.

सीएनएन ट्रंप के सामने खड़ा हो सकता है, तो भारतीय मीडिया सत्ता से सवाल क्यों नहीं कर सकता?

भारत के ज़्यादातर पत्रकार आज़ाद नहीं हैं बल्कि मालिक के अंगूठे के नीचे दबे हैं. वह मालिक, जो राजनेताओं के सामने दंडवत रहता है.

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