ख़य्याम ने जितनी फिल्मों के लिए काम किया उससे कहीं ज़्यादा फिल्मों को मना किया. एक-एक गाने के लिए वो अपनी दुनिया में यूं डूबे कि जब ‘रज़िया सुल्तान’ की धुन बनाई तो समकालीन इतिहास में तुर्कों को ढूंढा और और ‘उमराव जान’ के लिए उसकी दुनिया में जाकर अपने साज़ को आवाज़ दी.