हमें राजनीतिक आज़ादी तो मिल गई, लेकिन सामाजिक और आर्थिक आज़ादी कब मिलेगी?

आज़ादी के 71 साल: सरकार यह महसूस नहीं करती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा पर किया गया सरकारी ख़र्च वास्तव में बट्टे-खाते का ख़र्च नहीं, बल्कि बेहतर भविष्य के लिए किया गया निवेश है.

आख़िरकार दुनिया ने विश्वगुरु के ‘स्मार्ट कल्चर’ का लोहा मान लिया

'जनता की मांग पूरी करने में इतनी बुद्धि, वक़्त और पैसा ठोंक दोगे तो अगला चुनाव कैसे लड़ोगे? जनता जो मांग रही है, वो सच में दे दिया तो अगले चुनावी घोषणापत्र में क्या सबको मंगल की सैर कराने का वादा करोगे?'