1920 के दशक में भारत का पहला बांध-विरोधी आंदोलन पश्चिम महाराष्ट्र्र में पुणे के पास मुला-मुठा नदी के संगम पर टाटा कंपनी द्वारा बनाए गए मुलशी बांध के ख़िलाफ़ था. सेनापति बापट और विनायकराव भुस्कुटे की अगुवाई हुए आंदोलन के बावजूद कंपनी बांध बनाने में सफल रही, जिससे आज भी यहां के रहवासी प्रभावित हैं.
बीते दिनों नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के पुनर्वास आयुक्त ने पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकारा कि विस्थापितों और प्रभावितों के आकलन में ‘टोपो शीट’ पर पेंसिल से निशान लगाने की पद्धति का इस्तेमाल किया गया. बोलचाल में नजरिया सर्वे कही जाने वाली इस तरकीब में अंदाज़े से डूबने वाली हर चीज और जीती-जागती इंसानी बसाहटों को चिह्नित कर विस्थापित घोषित कर दिया गया था.
नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस द्वारा जारी घोषणा पत्रों का विश्लेषण कर रही हैं.