डासना की घटना से मालूम होता है कि जो हिंसा का निशाना बनाया गया है, पुलिस उसके साथ खड़ी हो सकती है. जिसने हिंसा की, पुलिस उसे खोजकर उसके साथ इंसाफ की प्रक्रिया शुरू कर सकती है. इंसानियत के बचे रहने की उम्मीद क़ानून या संविधान के बोध के जीवित और सक्रिय रहने पर ही निर्भर है.
हिंदू संगठनों द्वारा निकाली गई झांकी में अफ़राज़ुल हत्याकांड के आरोपी शंभूलाल को ‘एंटी लव जिहाद’ हीरो के रूप में दिखाया गया था.
निरपराधों के ख़िलाफ़, विरोध में हिंसा के महिमामंडन का बढ़ता सामान्यीकरण हमारे समाज के नैतिकता के ताने-बाने को उजागर करता है.
बीसियों साल से जिस तरह की विभाजनकारी राजनीति हो रही है, मीडिया के सहयोग से जिस तरह समाज में ज़हर बोया जा रहा है, उसकी फसल अब लहलहाने लगी है.