गुरुवार को सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सौदे संबंधी दस्तावेज़ों पर विशेषाधिकार का दावा करते हुए कहा कि संबंधित विभाग की अनुमति के बगैर कोई इन्हें अदालत में पेश नहीं कर सकता, जिस पर याचिकाकर्ता और वकील प्रशांत भूषण ने सरकार की आपत्तियों को दुर्भावनापूर्ण बताया.
द वायर से बात करते हुए द हिंदू के चेयरमैन और वरिष्ठ पत्रकार एन. राम ने रफाल सौदे और इसकी मीडिया कवरेज़ को लेकर मोदी सरकार की हालिया धमकियों पर अपनी राय साझा की.
रफाल सौदे पर बातचीत के लिए रक्षा मंत्रालय ने एक टीम गठित की, उसी तरह फ्रांस की तरफ से भी एक टीम बनी. दोनों के बीच लंबे समय तक बातचीत और मोलभाव हुआ. इस बीच भारतीय टीम को पता चला कि इस बातचीत में उनकी जानकारी के बिना पीएमओ भी शामिल है और अपने स्तर पर शर्तों को बदल रहा है. लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह बात छिपाई. क्या ये सरकार सुप्रीम कोर्ट से भी झूठ बोलती है?
रफाल सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से क़ीमत में आए अंतर, भारत के लिए विशेष रूप से किए जाने वाले बदलावों और यूरोफाइटर के प्रस्ताव से जुड़े सवाल अब भी बाक़ी हैं.
रफाल मामले में हालिया खुलासे के बाद पी चिदंबरम ने कहा, इस मामले की गहन जांच जेपीसी से होनी चाहिए. हम जेपीसी जांच की मांग दोहराते हैं.
साल 2007 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने रफाल की कीमत 643.26 करोड़ रुपये प्रति विमान तय की थी. साल 2015 में नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए सौदे के बाद यह राशि बढ़कर 1037.21 करोड़ रुपये प्रति विमान हो गई. पिछली सरकार में 126 विमानों का सौदा किया गया था वहीं मोदी सरकार ने इसे घटाकर 36 विमान कर दिया.
2007 में 126 विमानों को भारत के हिसाब से तैयार करने के लिए अलग से 1.4 बिलियन यूरो देने थे. 2016 में 36 विमानों को तैयार करने लिए 1.3 बिलियन यूरो दिए जाने का फ़ैसला होता है. आप गणित में फेल भी होंगे तब भी इस अंतर को समझ सकते हैं कि खेल कहां हुआ है.