यदि सरकारों ने बच्चों की प्रारंभिक देखरेख और सुरक्षा पर ध्यान दिया होता, तो आज राखी, मीनू और सीता ज़िंदा होतीं.
मोहसिन के कथित रूप से दाढ़ी रखने और हरे रंग की शर्ट पहनने पर साल 2014 में उसकी हत्या कर दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों को फिर से हिरासत में लेने का निर्देश दिया.
वीडियो: देश में बढ़ती सांप्रदायिक घटनाओं और बयानबाज़ी पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद से द वायर के कार्यकारी संपादक बृजेश सिंह की बातचीत.
हम भी भारत की 20वीं कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी दिल्ली में अंकित सक्सेना की हत्या को राजनीतिक रंग दिए जाने पर चर्चा कर रही हैं.
जिस समाज में प्रेम के ख़िलाफ़ इतने सारे तर्क हों, उस समाज को अंकित की हत्या पर कोई शोक नहीं है, वह फ़ायदे की तलाश में है.
शीर्ष अदालत ने नाराज़गी ज़ाहिर की कि गोवा, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, मिज़ोरम, मध्य प्रदेश और केंद्रशासित दमन एवं दीव तथा लक्षदीप के वकील वृद्धों की स्थिति से संबंधित याचिका की सुनवाई के दौरान उपस्थित ही नहीं हुए.
आपके मुल्क में अक्टूबर से लेकर आधी जनवरी तक एक फिल्म को लेकर बहस हुई है. साढ़े तीन महीने बहस चली. नौकरी पर इतनी लंबी बहस हुई? बेहतर है आप भी सैलरी की नौकरी छोड़ हिंदू-मुस्लिम डिबेट की नौकरी कर लीजिए.
आईआईएमसी में स्त्री शक्ति पर आयोजित एक संगोष्ठी में आरएसएस नेता कृष्ण गोपाल ने कहा कि जौहर-शाखा की परंपरा का हिस्सा थी जिसमें महिलाएं विदेशी आक्रमणकारियों के हरम का हिस्सा बनने की बजाय क़ुर्बान हो जाना पसंद करती थीं.
जयपुर साहित्य महोत्सव में फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने कहा कि लोग पहले भी आहत होते थे लेकिन अब आहत होने वालों को संरक्षण दिया जा रहा है.
बाबा साहब आंबेडकर के पोते ने भाजपा पर साधा निशाना. कहा- यह सरकार दोबारा आई तो हम जो बात कर रहे हैं, यह करने का अधिकार भी छीन लिया जाएगा.
यह कैसा समाज है जहां जीवित इंसान की कोई कीमत नहीं पर मृत व्यक्ति के सम्मान की रक्षा के नाम पर लोग सड़क पर उतर आते हैं, तोड़-फोड़ करते हैं, यहां तक कि हिंसा करने से भी नहीं चूकते.
अफ़राज़ुल हत्याकांड: ये तीन लोगों की कहानी है. भगवान, अल्लाह, गॉड, इलाही जिसको भी आप मानते हो, वो कहता है, साउंड, कैमरा, एक्शन और एक सीन शुरू होता है.
सिर्फ ये कहना कि ये किसी पार्टी विशेष की सरकार के कारण हुआ, समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से बचना है. सरकार की ज़िम्मेदारी है पर यह समझना भी ज़रूरी है कि हम ख़ुद अपने घरों में क्या बात कर रहे हैं.
बीते कई दशकों से एक साधन-संपन्न और बड़ा केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के बावजूद बीएचयू पूर्वांचल में ज्ञान और स्वतंत्रता की संस्कृति का केंद्र क्यों नहीं बन सका!
हिंदी दिवस पर विशेष: हम अपनी भाषा की महानता की गाथा में दूसरी भाषाओं के प्रति एक स्पर्धाभाव ले आते हैं. यह ठीक बात नही है. इससे किसी भी भाषा को आगे बढ़ने और दूसरे भाषायी-सांस्कृतिक स्थलों पर फूलने-फलने की संभावना न्यूनतम हो जाती है.