बस्तर संभाग के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव में 20 दिनों से हज़ारों ग्रामीण आंदोलनरत हैं. उनका कहना है कि उन्हें जानकारी दिए बिना उनकी ज़मीन पर राज्य सरकार ने सुरक्षाबल के कैंप लगा दिए हैं. ग्रामीणों को हटाने के लिए हुई पुलिस की गोलीबारी में तीन ग्रामीणों की मौत हुई है, जिसके बाद से आदिवासियों में काफ़ी आक्रोश है.
साल 2006 में नक्सल विरोधी समूह सलवा जुडूम और नक्सलियों के बीच लड़ाई के दौरान नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा ज़िले के एर्राबोर में हमला कर 32 आदिवासियों की हत्या कर दी थी, मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने सुकमा ज़िले के एक शख़्स की हत्या के आरोप में नवंबर 2016 में कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को नामजद किया था. फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार ने मामले की जांच की और हत्या में कार्यकर्ताओं की भूमिका न पाए जाने पर आरोप वापस लेते हुए एफआईआर से नाम हटा लिए.
जहां एक ओर कांग्रेस के लिए यह नक्सल समस्या को सुलझाने का एक नया मौका है, वहीं राहुल गांधी के लिए यह साबित करने का अवसर है कि वे और उनकी पार्टी वास्तव में देश के आदिवासियों की चिंता करते हैं.
कोई भी राजनीतिक आंदोलन, जो लोगों के जीवन में बदलाव लाने का दावा करता है, उसका लोकतांत्रिक होना बहुत ज़रूरी है.