सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विडंबना यह है कि एक वैश्विक रूप से जुड़े समाज ने हमें उन लोगों के प्रति असहिष्णु बना दिया है, जो हमारे अनुरूप नहीं हैं. स्वतंत्रता उन लोगों पर जहर उगलने का एक माध्यम बन गई है, जो अलग तरह से सोचते हैं, बोलते हैं, खाते हैं, कपड़े पहनते हैं और विश्वास करते हैं.
शायर और गीतकार गुलज़ार ने कहा कि हमें आज भी सांस्कृतिक आज़ादी नहीं मिल सकी है.