मलियाना नरसंहार के 34 साल: हाशिमपुरा की तरह क्या यहां के पीड़ितों को न्याय मिल पाएगा?

उत्तर प्रदेश में साल 1987 के मेरठ दंगों के दौरान 22 मई को यहां के हाशिमपुरा में 42 मुस्लिम युवकों को पीएसी जवानों द्वारा हत्या कर दी गई थी. इसके अगले दिन 23 मई को मलियाना गांव के 72 से अधिक मुसलमानों को इसी तरह मार डाला गया था. 2018 में हाशिमपुरा मामले में 16 पीएसी जवानों को उम्रक़ैद की सज़ा मिल चुकी है, लेकिन मलियाना के पीड़ितों को घटना के 34 साल बाद भी न्याय का इंतज़ार है.

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याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि 23 मई 1987 को पीएसी ने मेरठ के मलियाना गांव में मुस्लिम समुदाय के 72 लोगों की हत्या कर दी थी. याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट को बताया कि तीन दशक बीत जाने के बाद भी ट्रायल कोर्ट में सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी, क्योंकि एफआईआर समेत महत्वपूर्ण अदालती दस्तावेज़ संदिग्ध परिस्थितियों में ग़ायब हो गए हैं.

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हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 31 साल बाद आया फैसला. गवाह ने आरोप लगाया कि नरसंहार के बाद पुलिस के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पीड़ित लोगों को परेशान किया और कार्रवाई के नाम पर पक्षपात हुआ. इस केस को कमज़ोर करने की कोशिश की गई.

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1987 में उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या के आरोप में दिए निचली अदालत के फ़ैसले को पलटते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने 16 पीएसी जवानों को दोषी माना है.

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जन गण मन की बात की 57वीं कड़ी में विनोद दुआ हाशिमपुरा नरसंहार और स्वच्छ भारत अभियान की वर्तमान स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.

वीडियो: हाशिमपुरा की आवाज़ें

1987 में हुआ हाशिमपुरा नरसंहार बीते कुछ दशकों में हुई त्रासदियों में से एक है. ढेरों सबूतों और चश्मदीदों की गवाही के बावजूद मार्च 2015 में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था.

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हाशिमपुरा नरसंहार के समय जिन लोगों को पुलिस उठाकर ले गई थी, उनमें से कुछ ने अपनी आपबीती को नज़्म की शक्ल दी. इस ऑडियो में एक नज़्म है, जो जेल से लौटे नौजवानों ने लिखी थी.

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चारों तरफ़ ख़ून के धब्बे बिखरे थे. नहर की पटरी, झाड़ियों और पानी के अंदर ताज़ा जख़्मों वाले शव पड़े थे. समझ में सिर्फ़ इतना आया कि इन शवों और रास्ते में दिखे पीएसी की ट्रक में कोई संबंध ज़रूर है.