शीर्ष अदालत ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिए नौकरियों और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच जजों की पीठ को भेजते हुए कहा कि इसमें क़ानून से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल हैं, जिन्हें बड़ी पीठ द्वारा तय किया जाना चाहिए.
द वायर एक्सक्लूसिव: आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को आरक्षण देने वाले 124वें संविधान संशोधन विधेयक पर क़ानून मंत्रालय के अलावा किसी अन्य विभाग के साथ विचार-विमर्श नहीं किया गया था. सरकार ने 20 दिन के भीतर ही इस विधेयक की परिकल्पना कर इसे संसद के दोनों सदनों से पारित कराकर क़ानून बना दिया था.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के संबंध में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ़्तों में जवाब मांगा है.
गुजरात सरकार ने एक विज्ञप्ति में कहा, ‘14 जनवरी को उत्तरायण शुरू होने के साथ सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा.’