दीवार पर पहले ही लिखी जा चुकी थी यह इबारत

मोदी के हर क़दम ने हमें अचंभित किया है. यहां तक कि जब वे ज़हर उगलते रहे, तब भी हमारी प्रतिक्रिया ऐसी ही रही. योगी की ताजपोशी उनकी नयी पेशकश है. जो किया जा चुका है उसमें ख़ूबी तलाशना ही अब हमारा कर्तव्य रह गया है.

गुजरात दंगा: 15 साल बाद भी अमानवीय ज़िंदगी जीने को मज़बूर पीड़ित

2002 के गुजरात दंगों में विस्थापित हुए लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. दंगों के 15 साल बाद भी उनके पास न ज़मीन है न आधारभूत सुविधाएं.

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