दुनिया के 665 विश्वविद्यालयों के नेटवर्क 'स्कॉलर्स एट रिस्क' की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छात्रों और स्कॉलर्स की शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए सबसे गंभीर ख़तरों में सत्तारूढ़ भाजपा का राजनीतिक नियंत्रण और राष्ट्रवादी एजेंडा थोपने की कोशिश शामिल हैं.
बीते दिनों ओडिशा के संबलपुर के गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन को कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों की नारेबाज़ी के बीच अपना लेक्चर अधूरा छोड़ना पड़ा था. जेएनयू शिक्षक संघ ने इसकी निंदा करते हुए इसे अकादमिक स्वतंत्रता पर गंभीर हमला बताया है.
वी-डेम संस्थान द्वारा जारी ‘अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक’ में कहा गया है कि भारत दुनिया के 179 देशों में से उन 22 देशों में शुमार है, जहां शिक्षण संस्थानों और शिक्षाविदों को काफी कम स्वतंत्रता प्राप्त है. भारत इस मामले में नेपाल, पाकिस्तान और भूटान जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी पिछड़ा हुआ है.