कॉरपोरेट की क़र्ज़माफ़ी से विकास होता है, किसानों की क़र्ज़माफ़ी विकास-विरोधी है

भाषणों में पूरी राजनीति और सरकार किसानों-ग़रीबों को समर्पित है लेकिन किसान अपनी उपज समर्थन मूल्य से भी कम पर बेचने को मजबूर है.

प्रधानमंत्री किसानों से ऐसा वादा कर रहे हैं जिसे पूरा करना संभव नहीं

मोदी जी ने मनमोहन सिंह के लिए कहा था, 'जिस देश के किसान ख़ुदकुशी कर रहे हैं वहां के सत्ताधारी लोगों को नींद कैसे आ सकती है?' अब पता नहीं उन्हें नींद कैसे आती होगी.

जिस सरकार ने नोटबंदी की, उसी को क़र्ज़ माफ़ी का ख़र्च भी उठाना चाहिए

अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग उथली राजनीति है तो नरेंद्र मोदी का देश भर में घूम-घूम कर चुनावी सभाओं में वादा करना उथली राजनीति नहीं थी?

यह मिथक तोड़ना ज़रूरी है कि केवल रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं से कृषि उत्पादकता बढ़ती है

दुनिया में सैकड़ों उदाहरण उपलब्ध हैं जहां महंगी रासायनिक खाद व कीटनाशकों के बिना अच्छी कृषि उत्पादकता प्राप्त की गई है.

किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घाटे का सौदा है

वास्तव में किसानों से उपज खरीदने वालों से व्यापार में नैतिकता की अपेक्षा भर की जाती रही. सरकार ने यह कोशिश कभी नहीं की कि किसानों को उचित कीमतें मिलें.

‘किसानों के छोटे क़र्ज़ से दिक्कत है, उन उद्योगपतियों से नहीं जो हज़ारों करोड़ का लोन डकार जाते हैं’

कृषि, रोज़गार और महंगाई समेत दूसरे आर्थिक मसलों पर द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु से अमित सिंह की बातचीत.