इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी उन याचिकाकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा देते हुए की, जो साथ रहना चाहते थे और बाद में उन्होंने विवाह कर लिया. इससे पहले लिव-इन में रहने वाले एक दंपति की सुरक्षा की मांग वाली याचिका अदालत ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि महिला पहले से विवाहित थीं.
मामला सीतापुर ज़िले का है, जहां पुलिस ने चार लोगों को कथित तौर पर गोहत्या की बात करने को लेकर गोहत्या संरक्षण क़ानून के तहत हिरासत में लिया था. हाईकोर्ट ने एक आरोपी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस की कार्रवाई पर नाराज़गी जताई और पुलिस अधीक्षक से जवाब तलब किया है.
यूपी सरकार द्वारा बीते तीन सालों में दर्ज राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के 120 मामलों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है, जिसमें आधे से अधिक गोहत्या और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े थे. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार कोर्ट ने सांप्रदायिक घटनाओं से जुड़ी सभी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को सुनते हुए एनएसए के आदेश को रद्द कर दिया.
पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि एनएसए लगाने के मामलों में एक ढर्रे का पालन किया जा रहा था, जिसमें पुलिस द्वारा अलग-अलग एफ़आईआर में महत्वपूर्ण जानकारियां कट-पेस्ट करना, मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित डिटेंशन ऑर्डर में विवेक का इस्तेमाल न करना, आरोपी को निर्धारित प्रक्रिया मुहैया कराने से इनकार करना और ज़मानत से रोकने के लिए क़ानून का लगातार ग़लत इस्तेमाल शामिल है.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले का मामला. पुलिस ने शांति भंग करने के लिए पिछले साल आठ अक्टूबर को दो लोगों को गिरफ़्तार किया था. इन याचिकाकर्ताओं ने 12 अक्टूबर को निजी बॉन्ड और अन्य दस्तावेज़ जमा कराए थे, लेकिन एसडीएम ने उन्हें रिहा नहीं किया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जहां क़ानून ने सत्ता को अत्यधिक शक्ति प्रदान की है कि वे किसी भी व्यक्ति को सामान्य क़ानून के तहत मिले संरक्षण और कोर्ट के ट्रायल के बिना गिरफ़्तार कर सकते हैं, ऐसे क़ानून को इस्तेमाल करते वक़्त बेहद सावधानी बरती जानी चाहिए.
उत्तर प्रदेश के मऊ निवासी युवक पर मार्च महीने में तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने की जानकारी जान-बूझकर स्थानीय प्रशासन को नहीं देने और दिल्ली से घर लौटने पर स्वेच्छा से क्वारंटीन नहीं होने का आरोप था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फ़र्रुख़ाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिव-इन में रह रहे एक युवक-युवती को सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है, जो अपने पारिवारिक सदस्यों की प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं.
इससे पहले बीते 11 नवंबर के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा था कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ जीने का अधिकार जीवन एवं व्यक्तिगत आज़ादी के मौलिक अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि इसमें धर्म आड़े नहीं आना सकता है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि हम ये समझने में असमर्थ हैं कि जब क़ानून दो व्यक्तियों, चाहे वो समलैंगिक ही क्यों न हों, को साथ रहने की अनुमति देता है, तो फिर न तो कोई व्यक्ति, न ही परिवार और न ही सरकार को दो लोगों के संबंधों पर आपत्ति होनी चाहिए, जो अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं.
एक विवाहित दंपति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आग्रह किया था कि परिवार वालों द्वारा उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने पर रोक लगाने के लिए निर्देश दिए जाएं.
राज्य में इस साल 19 अगस्त तक रासुका के तहत गिरफ़्तार 139 में से 76 लोगों पर गोहत्या के आरोप हैं. हाईकोर्ट ने गोहत्या के मामलों में पुलिस द्वारा पेश साक्ष्यों की विश्वनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब भी कोई मांस बरामद होता है, तो फॉरेंसिक जांच कराए बिना ही उसे गोमांस क़रार दे दिया जाता है.
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार के आरोपी हैं. मार्च 2017 में गिरफ़्तार प्रजापति को हाईकोर्ट ने तीन सितंबर को मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत दी थी, जिसके ख़िलाफ़ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.
उत्तर प्रदेश सरकार ने लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों से वापस लौटे श्रमिकों को काम देने की बात कही है, लेकिन उसके नए श्रम क़ानून यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्रदेश के मज़दूर वह न्यूनतम वेतन भी न पा सकें, जिससे वे अपने लिए एक न्यूनतम संसाधनों वाली ज़िंदगी बनाए रख सके.
लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिसूचना जारी कर मज़दूरों के काम के घंटे आठ से बढ़ाकर से 12 घंटे कर दिया था. इसके इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाख़िल की गई थी, जिस पर अदालत ने सरकार को नोटिस जारी किया था.