सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने एक समारोह में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता को लागू करके समानता की बात करता है, उसे अप्रभावी नहीं रहना चाहिए.
जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा प्रार्थनास्थलों पर सरकार की नीति, अश्लीलता और लैंगिक न्याय को लेकर दिए गए फ़ैसले क़ानूनी पहलुओं से ज़्यादा उनके निजी मूल्यों पर आधारित नज़र आते हैं.
केरल में दो धड़ों के बीच चर्चों में प्रार्थना करने को लेकर विवाद था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में एक फैसला सुनाया था लेकिन केरल हाई कोर्ट ने बाद में इसमें बदलाव कर दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा बताया.
दिल्ली में हुई एक बैठक में सीबीआई जज बृजगोपाल लोया के दोस्त और वरिष्ठ अधिवक्ता उदय गवारे ने बताया कि जज की अचानक मौत पर उनके साथियों को संदेह हुआ था.