जनतंत्र के नाम पर अब कोई भी पक्ष लिया जा सकता है. इसका एक कारण यह भी है कि अब किसी चीज़ के कोई मायने नहीं: न मुक्ति, न समानता, न धर्मनिरपेक्षता, न पूंजी, न मज़दूर: सारे शब्द और अवधारणाएं व्यर्थ हो चुके हैं. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 30वीं क़िस्त.
जनतंत्र के नाम पर अब कोई भी पक्ष लिया जा सकता है. इसका एक कारण यह भी है कि अब किसी चीज़ के कोई मायने नहीं: न मुक्ति, न समानता, न धर्मनिरपेक्षता, न पूंजी, न मज़दूर: सारे शब्द और अवधारणाएं व्यर्थ हो चुके हैं. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 30वीं क़िस्त.