वीडियो: आम तौर पर ऐसा समझा जाता है कि आयुर्वेदिक दवाओं से कोई साइड-इफ़ेक्ट नहीं होता, क्योंकि उनका मानना है कि अगर कोई उत्पाद 'प्राकृतिक' है, तो इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन यह पूरा सच नहीं है. ये दवाएं किसी भी तरह के रेगुलेशन के अभाव में आम लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव छोड़ रही हैं. सवाल सेहत का की इस कड़ी में इसी बारे में बात की गई है.
2012 में गुजरात हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि मेडिसिन और सर्जरी में बैचलर ऑफ आयुर्वेद की डिग्री रखने वाले डॉक्टरों को एमबीबीएस डॉक्टरों के बराबर माना जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द करते हुए कहा कि चिकित्सकों की यह दोनों श्रेणियां समान वेतन की हक़दार होने के लिए समान काम नहीं कर रही हैं.
उत्तराखंड के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे अवैध ठहराया. संगठन ने कहा है कि एलोपैथी के बारे में जाने बिना आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाएं कैसे लिख सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों की इस सबंध में स्पष्ट राय है कि आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथी की प्रैक्टिस नहीं कर सकते, क्योंकि वे इसके योग्य नहीं हैं.