वीडियो: द वायर द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि कानून मंत्रालय ने तीन तलाक़ बिल पर किसी भी मंत्रालय या विभाग से विचार-विमर्श नहीं किया था. इसके लिए मंत्रालय ने दलील दी थी कि तीन तलाक़ की अनुचित प्रथा को रोकने की जल्द ज़रूरत है, इसलिए संबंधित मंत्रालयों से परामर्श नहीं लिया गया.
विशेष रिपोर्ट: आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मंत्रालय ने दलील दी थी कि तीन तलाक़ की अनुचित प्रथा को रोकने की अति-आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संबंधित मंत्रालयों से परामर्श नहीं लिया गया.
उत्तर प्रदेश में तीन तलाक़ के सबसे ज़्यादा 26 केस मेरठ में दर्ज हुए हैं. इसके बाद सहारनपुर में 17 और शामली में 10 केस दर्ज किए गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तीन तलाक़ के 10 केस सामने आए हैं.
याचिकाओं में तीन तलाक कानून को असंवैधानिक करार देने का अनुरोध करते हुए कहा गया है कि इससे संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन होता है.
सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में दायर इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून मुस्लिम पतियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
तीन तलाक़ का यह क़ानून 21 फरवरी को इस संबंध में लाए गए अध्यादेश की जगह लेगा. विधेयक में पत्नी को तीन तलाक़ के ज़रिये छोड़ने वाले मुस्लिम पुरुषों के लिए तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है.
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, अगर कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक़ देता है तो यह अवैध होगा. तीन तलाक़ का अपराध सिद्ध होने पर पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान किया गया है.
विपक्ष ने कहा, तलाक़ एक दीवानी मामला, यह फौज़दारी अपराध नहीं हो सकता. इसे आपराधिक जुर्म बनाने का उद्देश्य महिलाओं का संरक्षण नहीं, मुस्लिमों को प्रताड़ित करना और राजनीतिक लाभ लेना है.
शीतकालीन सत्र की 13 बैठकों के दौरान 41 घंटे से अधिक समय तक उच्च सदन की कार्यवाही चली तो हंगामे के कारण कामकाज के 34 घंटों का नुकसान हुआ.