ख़बरें हैं कि बकाया न चुकाए जाने के चलते अडानी पावर ने बांग्लादेश की बिजली आपूर्ति आधी कर दी है. हालांकि, पावर डेवलपमेंट बोर्ड के अधिकारी ने एक स्थानीय अख़बार से कहा कि पिछले बकाये का एक हिस्सा चुका दिया गया था, लेकिन जुलाई से अडानी पहले की तुलना में अधिक शुल्क ले रहे हैं.
बांग्लादेशी हिंदू समूहों का कहना है कि अगस्त की शुरुआत में शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद से अब तक हिंदुओं पर हज़ारों हमले हो चुके हैं. जबकि, अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस का कहना है कि आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए हैं.
भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का प्रभाव बढ़ने के साथ ही उद्योगपति गौतम अडानी के व्यापार का विस्तार पड़ोसी देशों- बांग्लादेश और श्रीलंका में देखने को मिला. हालांकि अब दोनों देशों में सत्ता परिवर्तन के बाद अडानी समूह के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
झारखंड में एक रैली को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने सूबे में बांग्लादेश के 'घुसपैठियों' को लेकर विभिन्न टिप्पणियां की थीं. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने इस पर कहा है कि ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की पड़ोसी देशों के नागरिकों पर की गई टिप्पणियों से आपसी सम्मान की भावना कमज़ोर पड़ती है.
पिक्चर पोस्टकार्ड: बांग्लादेश का हिंदू चुभती हुई पीड़ा के साथ जी रहा है. अपने मुल्क में वह पराया हो गया है, और भारतीय सत्ता उसे 'दीमक' कह कर लांछित करती आ रही है.
साल 2017 के एक समझौते के तहत उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनी बांग्लादेश को बिजली निर्यात करती है. अब वहां की अंतरिम सरकार न सिर्फ़ इस समझौते की शर्तों की समीक्षा करना चाहती हैं, बल्कि यह मूल्यांकन भी करना चाहती है कि बिजली के लिए जो क़ीमत चुकाई जा रही है, वो उचित है या नहीं.
तख्तापलट के बाद मुहम्मद यूनुस ने कहा था कि बांग्लादेश को दूसरी आज़ादी मिली है, लेकिन इसके असल लाभार्थी तमाम कट्टरपंथी संगठन बन रहे हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि बांग्लादेश में उथल-पुथल के कारण कुछ परियोजनाओं पर काम रुका हुआ है. एक बार जब हालात स्थिर हो जाते हैं तो हम पड़ोसी देश से बात करेंगे.
शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की अल्पसंख्यक राजनीति विभाजित हो गयी है. कुछ हिंदू कहते हैं कि तख्तापलट के दौरान और उसके बाद अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गये हैं, और कुछ दावा करते हैं कि ये आरोप बेबुनियाद हैं और माहौल को भड़काने के लिए हैं.
राणा दासगुप्ता बांग्लादेश के प्रमुख अल्पसंख्यक नेता हैं. द वायर हिंदी से बात करते हुए उन्होंने दावा किया कि शेख़ हसीना के सत्ता से हटने के बाद 52 ज़िलों में अल्पसंख्यकों पर हमलों और उत्पीड़न की कम से कम 205 घटनाएं हुई हैं.
किसी भी देश में बहुसंख्यकवाद हो, उसका प्रभाव दूसरे देश की प्रगति को बाधित करेगा. दोनों देशों की छवियां भी इससे प्रभावित होंगी. यदि भारत और बांग्लादेश में से एक में भी धर्मनिरपेक्षता ख़त्म होती है तो ऊपर से चाहे जितने भी समझौते कर लिए जाएं, कभी अमन क़ायम नहीं हो सकता.
बांग्लादेश के मूल्यों और संस्कृति के लिए घरेलू सांप्रदायिकता की अपेक्षा भारत में होने वाली मुसलमान विरोधी बयानबाज़ी और राजनीति ज़्यादा घातक है. भारत में मुसलमानों पर किए जा रहे व्यक्तिगत या संगठित अत्याचार हों, या अयोध्या और 'लव जिहाद' से संबंधित अदालती फैसले, इन सबका घातक प्रभाव बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता पर होता है.
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के बारे में विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके सभी अंग विकसित हो रहे हैं, हालांकि बढ़ती हुई असमानता आज भी चिंता का विषय है.
हालिया सालों में कई दक्षिण एशियाई देशों में हिंसक तरीके से सरकारें गिराई गई हैं. अपने पड़ोस में भारत की कूटनीतिक विफलताएं क्या रहीं? क्या भारत कुछ अलग कर सकता था? इस बारे स्वतंत्र पत्रकार और विदेश मामलों की विशेषज्ञ निरुपमा सुब्रमण्यम से द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.
बांग्लादेश में भारत के विरोध के तीन प्रमुख कारण नज़र आते हैं- सांप्रदायिक ताक़तें, दक्षिणपंथी राजनीतिक दल और घरेलू कारणों से भारत को लेकर खड़ा किया गया भय.