ओडिशा में नवीन पटनायक और नरेंद्र मोदी के बीच ही मुख्य मुक़ाबला

वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष मिश्रा बता रहे हैं कि ओडिशा में मुख्य मुक़ाबले से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दूर नज़र आ रहे हैं. गांवों में भी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की संभावनाओं की चर्चा कर रहे हैं.

आरएसएस भारत के लिए समस्या बन सकता हैः रघुराम राजन

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि आरएसएस का संकीर्ण वैश्विक दृष्टिकोण भारत के लिए गतिरोध पैदा कर सकता है. यह देश हमारे संस्थापकों नेहरू, गांधी के विचारों और हमारे संविधान की बुनियाद पर खड़ा है.

भाजपा को बढ़त, पर क्षेत्रीय नेता विपक्ष को गायब होने से बचा सकते हैं

वरिष्ठ पत्रकार मार्क टली बता रहे हैं कि विपक्ष इस चुनाव का पहला राउंड हार चुका है. उसके लिए भाजपा को अंतिम राउंड में जीतने से रोकना बहुत कठिन है.

सात साल में अमित शाह की संपत्ति तीन गुना तो पांच साल में उनकी पत्नी की संपत्ति 16 गुना बढ़ी

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार को गांधीनगर लोकसभा सीट से नामांकन दाख़िल किया. हलफ़नामे के मुताबिक, शाह और उनकी पत्नी की चल और अचल संपत्ति 2012 के 11.79 करोड़ रुपये से बढ़कर 38.81 करोड़ रुपये हो गई है.

लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा हमला भाजपा के लिए तोहफाः पूर्व रॉ प्रमुख

रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत का कहना है कि राष्ट्रवाद युद्ध की ओर ले जाता है. हमें कश्मीरी नागरिकों से बात करनी चाहिए क्योंकि आगे बढ़ने का यही एक रास्ता है.

कैराना सीट: भाजपा उम्मीदवार को अपनी ही पार्टी की वजह से हार का ख़तरा है

कैराना उत्तर प्रदेश की उन तीन सीटों में शामिल है, जहां 2018 के उपचुनाव में भाजपा हार गई थी. भाजपा ने इस सीट से इस बार गुर्जर नेता हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह का टिकट काटकर प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है. वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग बता रहे हैं प्रदीप चौधरी को उनकी ही पार्टी से ख़तरा है.

क्या आंध्र में चंद्रबाबू नायडू का खेल बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं जगनमोहन रेड्डी?

पिछली बार टीडीपी और भाजपा ने साथ चुनाव लड़ा था और पवन कल्याण ने प्रचार किया था. अब पवन कल्याण अपनी पार्टी जनसेना लेकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अकेले उतरे हैं. भाजपा और टीडीपी भी अलग लड़ रहे हैं. इसका नुकसान टीडीपी को हो सकता है. अमित कुमार निरंजन की रिपोर्ट.

लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर सीट से अमित शाह ने नामांकन पत्र दाख़िल किया

छह बार से भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. इस बार पार्टी ने आडवाणी को टिकट न देकर अमित शाह को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. शाह पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.

क्या भोपाल से चुनाव लड़ाकर दिग्विजय सिंह को बलि का बकरा बनाया जा रहा है?

35 सालों से न जीती गई भोपाल सीट पर दिग्विजय सिंह को उतारने के पीछे केंद्रीय नेतृत्व से अधिक मुख्यमंत्री कमलनाथ की मंशा बताई जा रही है. विश्लेषक मानते हैं कि दिग्विजय की हार या जीत से फायदा कमलनाथ का ही है. जीत दिग्विजय को दिल्ली पहुंचाएगी, जिससे राज्य की राजनीति में उनका हस्तक्षेप कम होगा और हार ज़ाहिर तौर पर उनका क़द कम कर देगी.

मिशन शक्ति पर प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन की नहीं थी जानकारी: चुनाव आयोग

27 मार्च को प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन के बारे में राजनीतिक दलों की शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने बताया कि इस बारे में न तो प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से आयोग को सूचित किया गया था और न ही अनुमति मांगी गई थी.

देश के सौ से अधिक फिल्मकारों ने की भाजपा को वोट न देने की अपील

फिल्मकारों का कहना है कि मॉब लिंचिंग और गोरक्षा के नाम पर देश को सांप्रदायिकता के आधार पर बांटा जा रहा है. कोई भी व्यक्ति या संस्था सरकार के प्रति थोड़ी-सी भी असहमति जताते हैं तो उन्हें राष्ट्र विरोधी या देशद्रोही क़रार दिया जाता है.

द वायर बुलेटिन: भाजपा समर्थक फेसबुक पेजों ने दो हफ्ते में प्रचार पर ख़र्च किए डेढ़ करोड़ रुपये

उत्तराखंड में सीनियरों द्वारा छात्र की पीट-पीटकर हत्या के बाद प्रशासन द्वारा शव को स्कूल में ही दफनाने समेत आज की बड़ी ख़बरें. दिनभर की महत्वपूर्ण ख़बरों का अपडेट.

जयाप्रदा पर सपा नेता की आपत्तिजनक टिप्पणी, महिला आयोग ने भेजा नोटिस

समाजवादी पार्टी के नेता फ़िरोज़ ख़ान ने कहा कि जयाप्रदा के रामपुर आने पर यहां की शामें रंगीन होंगी. आज़म खां ने रामपुर में बहुत काम किया है इसलिए वोट तो सपा को ही देंगे, लेकिन इसके बीच लोग अब मज़ा लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

भाजपा समर्थक फेसबुक पेजों ने दो हफ्ते में प्रचार पर ख़र्च किए डेढ़ करोड़ रुपये- रिपोर्ट

फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, दो सप्ताह के भीतर विज्ञापनों पर खर्च करने में शीर्ष 20 फेसबुक पेजों का योगदान 1.9 करोड़ रुपये से ज्यादा का है.

मुज़फ़्फ़रनगर दंगा: चुनावों की भेंट चढ़ती नैतिकता

मुज़फ़्फ़रनगर दंगों पर राजनीतिक रोटियां सबने सेंक लीं पर दंगा पीड़ितों को न्याय नहीं मिला. जो लोग तब सरकार चला रहे थे वे कहते हैं कि दंगे नहीं रोक सकते थे. तो अब सवाल यह है कि इस बार उन्हें क्यों चुना जाए?

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