पंजाब में हुई कथित सुरक्षा चूक की जांच अवश्य होनी चाहिए, लेकिन यह प्रधानमंत्री के सुरक्षा प्रोटोकॉल में उल्लंघन की पहली घटना नहीं है. पूर्व एसपीजी अधिकारियों का कहना है कि आखिरी फैसला नरेंद्र मोदी ही लेते हैं और अक्सर सुरक्षा के तय कार्यक्रमों को अंगूठा दिखा देते हैं.
प्रधानमंत्री की ख़ासियत है कि जब-जब वे अप्रिय स्थिति में पड़ते हैं किसी न किसी तरह उनकी जान को ख़तरा पैदा हो जाता है. जब से वे मुख्यमंत्री हुए तब से अब तक कुछ समय के बाद उनकी हत्या की साज़िश की कहानी कही जाने लगती है. लोग गिरफ़्तार किए जाते हैं, पर कुछ साबित नहीं होता. फिर एक रोज़ नए ख़तरे की कहानी सामने आ जाती है.
सुरक्षा में चूक को लेकर ख़ुद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी जिस तरह उसी क्षण से इस घटना को सनसनीखेज़ बनाकर राजनीतिक लाभ उठाने में लग गए हैं, उससे ज़ाहिर है कि वे घटना की गंभीरता को लेकर कम और उससे मुमकिन चुनावी फायदे के बारे में ज़्यादा गंभीर हैं.
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई है. इस सवाल को रैली में कितने लोग आए, कितने नहीं आए इसे लेकर ज़्यादा बहस की ज़रूरत नहीं. सुरक्षा इंतज़ामों में पंजाब सरकार की भूमिका हो सकती है लेकिन यह एसपीजी के अधीन होती है. प्रधानमंत्री कहां जाएंगे और उनके बगल में कौन बैठेगा यह सब एसपीजी तय करती है. इसलिए सबसे पहले कार्रवाई केंद्र सरकार की तरफ से होनी चाहिए.