पुस्तक समीक्षा: अपनी नई किताब ‘मोदीनामा’ में लेखक और कार्यकर्ता सुभाष गाताडे कहते हैं कि प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के पिछले पांच वर्षों की यात्रा आने वाले पांच वर्षों के लिए चेतावनी है.
नेताओं के स्तुतिगान करने के इस दौर में आमने-सामने बैठकर आंखों में आंखें डालकर कड़े और कठिन सवालों के लिए जाने जाने वाले करण थापर की किताब ‘मेरी अनसुनी कहानी’ को पढ़ना सुकून देता है, क्योंकि असहमति और सवाल पूछना ही लोकतंत्र की ताक़त है.
पुस्तक समीक्षा: अपनी किताब ‘बदलता गांव बदलता देहात: नयी सामाजिकता का उदय’ में सत्येंद्र कुमार ग्रामीण भारतीय जीवन को देखने की बनी-बनाई समझ और उससे पैदा हुई बहसों से परे जाकर उसे उसके रोज़मर्रा के जीवन में समझने की कोशिश करते हैं.
पुस्तक समीक्षा: अपनी किताब ‘नो नेशन फॉर वीमेन’ में प्रियंका दुबे इस बात की पड़ताल करती हैं कि कैसे भारत में महामारी की तरह फैले बलात्कार का कारण हवस कम, पितृसत्ता ज़्यादा है. कैसे औरत को ‘उसकी जगह’ दिखाने के लिए बलात्कार का सहारा लिया जाता है.
हैप्पीमॉन जैकब की हालिया किताब ‘द लाइन ऑफ कंट्रोल, ट्रैवलिंग विद द इंडियन एंड पाकिस्तानी आर्मी’ भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता को बहुत गहराई और दिलचस्प तरीके से हमारे सामने रखती है.