गुजरात विधानसभा ने दंड प्रक्रिया संहिता (गुजरात संशोधन) विधेयक मार्च 2022 में पारित किया था. इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गई है. इसमें सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी निषेधाज्ञा के उल्लंघन को आईपीसी की धारा 188 (एक लोक सेवक द्वारा जारी आदेश की अवज्ञा) के तहत एक संज्ञेय अपराध बनाने का प्रावधान करता है.
सुप्रीम कोर्ट पिछले महीने सभी उच्च न्यायालयों को सांसदों-विधायकों के ख़िलाफ़ पांच साल से अधिक समय से लंबित आपराधिक मामलों और उनके शीघ्र निपटारे के लिए उठाए गए क़दमों समेत पूरा विवरण उपलब्ध कराने को कहा था. हालांकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत सात राज्यों ने इस संबंध में जानकारी नहीं दी है.
सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2016 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने पर राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग के अलावा सांसद-विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों में तेज़ सुनवाई की मांग की थी.