सरकार सुनिश्चित करे कि सरकारी हलफ़नामे मीडिया में पहुंचने से पहले अदालत में दाखिल हों: सीजेआई

एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता से कहा कि मेरे जनसंपर्क अधिकारी रोज सुबह के अखबारों में आपके हलफनामे के बारे में खबरें दिखाते हैं, जबकि वे कोर्ट में दायर नहीं हुए होते हैं.

सरकारों द्वारा न्यायाधीशों की छवि ख़राब करने का नया चलन दुर्भाग्यपूर्ण: सीजेआई एनवी रमना

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक आदेश के ख़िलाफ़ अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. उन्होंने न्यायिक फैसले सरकारों की पसंद के अनुरूप नहीं होने पर उनके द्वारा जजों की छवि ख़राब किए जाने को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ क़रार दिया और इस नई प्रवृत्ति पर अफ़सोस जताया.

न्यायिक अवसंरचना निगम और वकीलों की सहायता पर केंद्र का जवाब नहीं आया: सीजेआई रमना

सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि बढ़ते मामलों की वजह केवल न्यायाधीशों की कमी नहीं है बल्कि इससे निपटने के लिए बुनियादी सुविधाओं की भी ज़रूरत है. ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराए बिना यह आशा करना कि जज और वकील कोर्ट की जर्जर इमारत में बैठक कर न्याय देंगे, उचित नहीं है.

विधायिका पारित क़ानून के प्रभाव का आकलन नहीं करती, जिससे बड़े मुद्दे खड़े होते हैं: सीजेआई

संविधान दिवस समारोह के समापन कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि अदालतों में मामले लंबित होने का मुद्दा बहुआयामी है. विधायिका अपने द्वारा पारित क़ानूनों के प्रभाव का अध्ययन नहीं करती और इससे कभी-कभी बड़े मुद्दे उपजते हैं. ऐसे में पहले से मुक़दमों का बोझ झेल रहे मजिस्ट्रेट हज़ारों केस के बोझ से दब गए हैं.

औपनिवेशिक युग के क़ानूनों और उनकी व्याख्या पर ग़ौर किया जाना चाहिए: जस्टिस नरसिम्हा

शीर्ष अदालत के नौ नवनियुक्त न्यायाधीशों के अभिनंदन के लिए आयोजित एक समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा ने कहा कि भारत को औपनिवेशिक युग के क़ानूनों और उनकी व्याख्या के कारण 70 साल से अधिक समय तक प्रभावित होना पड़ा है. बड़ी संख्या में क़ानून, बड़ी संख्या में व्याख्याओं पर फ़िर से ग़ौर करने की ज़रूरत है.

संसदीय बहसों का न होना खेदजनक स्थिति है: मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना

स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि संसद में बहस की कमी के कारण क़ानून बनाने की प्रक्रिया में बहुत सारी अस्पष्टताएं होती हैं. हमें नहीं पता कि विधायिका का इरादा क्या है, क़ानून किस उद्देश्य से बनाए गए. इससे लोगों को असुविधा होती है. ऐसा तब होता है, जब क़ानूनी समुदाय के सदस्य संसद और राज्य विधानमंडलों में नहीं होते.

कृष्णा नदी जल विवाद: सीजेआई ने आंध्र प्रदेश की याचिका पर सुनवाई से ख़ुद को अलग किया

आंध्र प्रदेश ने तेलंगाना के साथ विवाद को मध्यस्थता से सुलझाने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को मानने से इनकार कर दिया है. इसके बाद आंध्र प्रदेश से ताल्लुक़ रखने वाले सीजेआई ने मामले की सुनवाई से अपने आप को अलग कर लिया.

अयोग्यता याचिकाओं के समय पर निस्तारण के लिए केवल संसद क़ानून बना सकती है: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस समिति के सदस्य राणाजीत मुखर्जी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने अयोग्य क़रार देने संबंधी याचिकाओं के समय पर निस्तारण की मांग की थी.