आरोप है कि शरजील इमाम ने उत्तर-पूर्व को भारत से काट देने का उकसावा देते हुए भाषण दिए थे. उन्होंने इतना ही किया था कि सरकार पर दबाव डालने के लिए रास्ता जाम करने की बात कही थी. किसान अभी चारों तरफ़ से दिल्ली का रास्ता बंद करने की बात कह रहे हैं, जिससे सरकार पर दबाव बढ़े और वह अपना अड़ियलपन छोड़े. क्या इसे आतंकवादी कार्रवाई कहा जाएगा?
वरिष्ठ अधिवक्ता महमूद प्राचा दिल्ली दंगों के आरोपियों की अदालत में पैरवी कर रहे हैं. प्राचा के सहयोगी वकीलों का आरोप है कि पुलिस की यह छापेमारी सभी रिकॉर्ड और दस्तावेज़ नष्ट करने का प्रयास था.
कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में इस साल फरवरी में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में 26 फरवरी को गिरफ़्तार किया गया था. उनके ख़िलाफ़ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है.
मद्रास हाईकोर्ट की पीठ सीएए और एनआरसी को लेकर प्रदर्शन कर दो व्यक्तियों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने इसे लेकर अपने ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को ख़ारिज करने की मांग की थी.
पुलिस ने दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद को 14 सितंबर और छात्र शरजील इमाम को 25 अगस्त को यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया था.
ठाकुरगंज के रहने वाले 16 साल के हुसैन को सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल होने के आरोप में 25 दिसंबर 2019 को उनके दोस्त के घर से गिरफ़्तार किया गया था. हुसैन का कहना है कि उन्होंने सीएए विरोधी किसी भी प्रदर्शन में कभी हिस्सा नहीं लिया था.
दिल्ली पुलिस ने दंगा मामले में गवाही देने वाले 15 सार्वजनिक गवाहों ने जान को ख़तरा बताया था, जिसके चलते छद्मनामों का इस्तेमाल कर उनकी पहचान गुप्त रखी गई थी. पिछले दिनों अदालत में दाख़िल पुलिस की 17,000 पन्नों की चार्जशीट में इन सभी के नाम-पते सहित पूरी पहचान ज़ाहिर कर दी गई थी.
केंद्र एवं राज्य सरकारों में काम कर चुके पूर्व लोक सेवकों के एक समूह ‘कॉन्स्ट्यूटिशनल कंडक्ट ग्रुप’ द्वारा गठित इस समिति के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर हैं. यह दिल्ली दंगों के संबंध में सरकार, पुलिस और मीडिया की भी भूमिका की जांच करेगी.
दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने पांच अक्टूबर को ऐसे सात वीडियो क्लिप दिल्ली पुलिस को सौंपे हैं, जिसमें से कुछ में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान दो पुलिसकर्मी कथित दंगाइयों के साथ मिलकर ईंट और अंडे फेंक रहे हैं.
दिल्ली पुलिस ने कहा था कि दिल्ली दंगा मामले में गवाही देने वाले 15 सार्वजनिक गवाहों ने जान को ख़तरा बताया है, जिसके चलते छद्मनामों का इस्तेमाल कर उनकी पहचान गुप्त रखी गई है. पिछले दिनों दायर पुलिस की 17,000 पन्नों की चार्जशीट में इन सभी के नाम-पते सहित पूरी पहचान ज़ाहिर कर दी गई है.
अदालत में दाख़िल दिल्ली पुलिस की एक चार्जशीट के अनुसार, ‘हिंदू कट्टर एकता’ नाम का वॉट्सऐप ग्रुप कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय से बदला लेने के लिए 25 फरवरी को बनाया गया था.
दिल्ली पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों के संबंध में 10,000 पन्नों की चार्जशीट दाख़िल की. इसमें 747 गवाहों को सूचीबद्ध किया गया है और उनमें से 51 के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए हैं.
आईपीएस अधिकारियों ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर दंगे से जुड़े सभी मामले की दोबारा निष्पक्षता से जांच कराने का अनुरोध किया है. पत्र में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे लोगों को इसमें फंसाना दुखद है. बिना किसी ठोस साक्ष्य के इन पर आरोप लगाना निष्पक्ष जांच के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन है.
गिरफ़्तारी पर कार्यकर्ताओं के एक समूह ने बयान जारी कर दिल्ली पुलिस की निंदा करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाने के लिए पुलिस अपनी दुर्भावनापूर्ण जांच के ज़रिये उन्हें फंसा रही है.
जेएनयू के पूर्व छात्र कार्यकर्ता उमर ख़ालिद ने दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि पुलिस अधिकारी उन्हें फ़ंसाने के लिए उनके परिचितों को डरा-धमकाकर फ़र्ज़ी बयान देने को मजबूर कर रहे हैं.