भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी मानवाधिकार वकील सुधा भारद्वाज ने बीते 11 जून को डिफॉल्ट ज़मानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जामदार की खंडपीठ ने एनआईए को इस पर हलफ़नामा दाख़िल करने के लिए तीन जुलाई तक का समय दिया है.
वीडियो: कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच ग्रामीण उत्तर प्रदेश में स्व-वित्तपोषित स्कूल जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कई छात्र कक्षाओं में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि उनके परिवारों के पास ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आवश्यक उपकरण- स्मार्ट फोन या लैपटॉप नहीं हैं. स्कूल प्रबंधन शिक्षकों को भुगतान करने में असमर्थ हैं.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रकोप से देश के गांव भी नहीं बच सके हैं. इस दौरान मीडिया में प्रकाशित ख़बरें बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 का प्रभाव सरकारी आंकड़ों से अलहदा है.
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि जब तक बड़ी संख्या में आबादी का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक कोविड-उपयुक्त व्यवहार का आक्रामक तरीके से पालन करने की आवश्यकता है. उन्होंने संक्रमण के मामलों में बड़ी वृद्धि होने पर कड़ी निगरानी और क्षेत्र-विशेष में लॉकडाउन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने बीते 17 जून को कहा था कि कोरोना संक्रमण की फ़र्ज़ी टेस्ट रिपोर्ट जारी होने का मामला उनसे पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हुआ था. कोरोना संक्रमण के बीच हरिद्वार में एक से 30 अप्रैल तक कुंभ मेले का आयोजन किया गया था.
आगरा के पारस अस्पताल के मालिक का एक कथित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वे मॉक ड्रिल के तौर पर पांच मिनट के लिए कोविड और ग़ैर कोविड वार्ड में ऑक्सीजन सप्लाई बंद करने की बात कह रहे थे. आरोप है कि इस दौरान 22 मरीज़ों की मौत हुई. मामला सामने आने के बाद एफआईआर दर्ज कर अस्पताल को सील कर दिया गया था.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कुंभ के दौरान कोविड प्रसार को नियंत्रित रखने के लिए राज्य सरकार को प्रतिदिन 50,000 नमूनों की जांच कराने का निर्देश दिया था, जिसके लिए ज़िला स्वास्थ्य विभाग ने एक कंपनी के ज़रिये कुछ निजी लैबों को ज़िम्मा सौंपा था. आरोप हैं कि इन्होंने फ़र्ज़ी निगेटिव कोविड जांच रिपोर्ट जारी कीं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते दिनों गोरखपुर के दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को गोद लेने की घोषणा की थी. स्थापना के कई साल बाद भी इन केंद्रों में न समुचित चिकित्साकर्मी हैं, न ही अन्य सुविधाएं. विडंबना यह है कि दोनों अस्पतालों में एक्स-रे टेक्नीशियन हैं, पर एक्स-रे मशीन नदारद हैं.
कांग्रेस नेता गौरव पांधी ने एक आरटीआई के जवाब में मिले दस्तावेज़ को साझा करते हुए कोवैक्सीन में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किए जाने का दावा किया था. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल केवल वेरो कोशिकाएं तैयार करने और उनके विकास के लिए ही किया जाता है. वैक्सीन के अंतिम रूप में बछड़े का सीरम बिल्कुल नहीं होता.
भारत सरकार ने जिस वैज्ञानिक समूह की मंज़ूरी के आधार पर कोविशील्ड की दो खुराक के बीच के अंतर को दोगुना किया था, उस वैज्ञानिक सलाहकार समूह के तीन सदस्यों ने इससे इनकार किया था. इस पर स्पष्टीकरण देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि तीनों में से किसी सदस्य ने असहमति व्यक्त नहीं की थी.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि बेहद दुख की बात है कि केंद्र सरकार ने इस समिति को ख़ारिज कर दिया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह सिर्फ़ दिल्ली की बात नहीं है, बल्कि पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड सहित कई अन्य राज्यों की बात है, जहां केंद्र, राज्य सरकारों के काम में बाधा डाल रहा है.
कोविड-19 का टीका लगाए जाने के बाद प्रतिकूल प्रभावों (एईएफआई) का अध्ययन करने वाली राष्ट्रीय समिति ने माना है कि 68 साल के एक व्यक्ति को बीते मार्च में को टीका लगाया गया था, जिसके बाद गंभीर एलर्जी (एनाफिलैक्सिस) होने से उनकी मृत्यु हो गई. हालांकि समिति ने कहा कि कोविड-19 से मौत के ज्ञात जोख़िम की तुलना में टीकाकरण से मृत्यु का जोख़िम नगण्य है.
केंद्र सरकार ने जिस वैज्ञानिक समूह की मंज़ूरी के आधार पर कोविशील्ड वैक्सीन की दो खुराक के बीच के अंतर को 6-8 सप्ताह से बढ़ाकर 12-16 सप्ताह करने का दावा किया था, उसके तीन प्रमुख सदस्यों ने कहा है कि इस टीके की दो खुराक के अंतर को दोगुना करने की सिफ़ारिश के लिए निकाय के पास पर्याप्त डेटा नहीं है.
कोरोना महामारी की घातक दूसरी लहर के दौरान जहां जनता तमाम संकटों से जूझ रही थी, वहीं योगी आदित्यनाथ की सरकार एक अलग वास्तविकता की तस्वीर पेश कर रही थी.
विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश भाजपा में ‘राजनीतिक अस्थिरता’ का संक्रमण शुरू हो गया, जिसके केंद्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. भाजपा-आरएसएस के नेताओं के मंथन के बीच सवाल उठता है कि हाल के दिनों में ऐसा क्या हुआ कि उन्हें यूपी का रण जीतना उतना आसान नहीं दिख रहा, जितना समझा जा रहा था.